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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ..................................................... वररइयसालभंजियासुसिलिट्टविसिट्टलट्ठसंठिय-पसत्थ-वेरुलियखंभं णाणामणिकणगरयणखचितउज्जलं बहसमसुविभत्तणिचिय रमणिज्जभूमिभागं ईहामियउसभतुरगणरमगरविहगवालग किण्णररुरुसरभ चमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गय-वयरवेइया-परिगयाभिरामं विज्जाहरजमलजुयलजुत्तं विव अच्चिसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणथूभियागं णाणाविहपंचवण्ण-घंटापडागपरिमंडियग्गसिहरं धवलमरीचिकवयं विणिम्मुयंतं', लाउल्लोइयमहियं गोसीस सरस रत्त चंदरदडुर दिण्णपंचंगुलितलं उवचियचंदण कलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं आसत्तो सत्त विउलवट्टवग्यारियमल्लदामकलावं पंचवण्ण-सरससुरभिमुक्कपुप्फ- पुंजोवयारकलियं कालागरुपवर कुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमघतगंधुद्भुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं॥२०१॥
___ कठिन शब्दार्थ - णवंगसुत्तपडिबोहिए - सोये हुए नौ अंग (दो कान, दो नाक के छिद्र, दो आंखें, एक स्पर्शनइन्द्रिय, एक जिह्वा और एक मन) जागृत हो गये, अट्ठारनविहिप्पगार देसीभासाविसारए - अठारह देश की भाषाओं में प्रवीण, वियालचारी - अकाल में विचरण करने वाला, पंचसयपासायवडिंसए - पांच सौ उत्तम महल, अब्भुग्गयमूसियपहंसिय विव - बहुत ऊंचे महल स्वच्छ प्रभा से ऐसे मालूम होते थे मानो हंसते थे, वाउद्भूयविजयवेजयंती पडागाछत्ताइच्छत्तकलिए - विजय की सूचना करने वाली वायु से हिलती हुई पताकाओं के ऊपर की पताकाओं से तथा छत्रों के ऊपर छत्रों से युक्त, तुंगे - ऊंचे, जालंतररयण पंजरुम्मिलियव्व- जालियों के मध्य भाग में लगे हुए रत्न चमकते थे, तिलयरयणद्धयचंदच्चिएतिलक, रत्न और सीढियों से युक्त, णाणामणिमयदामालंकिए- नानामणिमय मालाओं से शोभायमान, सण्हे - चिकने, तवणिज्जरुइलवालुयापत्थरे - तपे हुए सोने की सुंदर रेत जहां बिछी हुई थी, सुहफासे - सुखकारी स्पर्श, सस्सिरीयस्वे - सुंदर रूप वाले, अणेगखंभसयसण्णिविटुं - सैंकड़ों खंभे लगे हुए, लीलडियसालभंजियाणं - लीला करती हुई पुतलियां, अब्भुग्गयसुकयवयरवेइयातोरणं - उनमें वज्रवेष्टित सुंदर तोरण लगे हुए थे, वररइयसालभंजिय
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