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प्रथम अध्ययन - माता-पिता द्वारा महलों का निर्माण
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भावार्थ - इसके पश्चात् उस कलाचार्य ने लिपि और गणित से लगा कर पक्षियों के शब्द से शुभाशुभ जानने तक बहत्तर कलाओं को सूत्र, अर्थ और करण यानी प्रयोग करके सुबाहु कुमार को सिखाया और कार्य रूप में अभ्यास कराया। सिखा कर और अभ्यास करा कर उसके माता-पिता को वापिस सौंप दिया। तदनन्तर सुबाहुकुमार के माता-पिता ने मधुर वचनों से और विपुल यानी बहुत वस्त्र, गंध, फूलमाला और कपड़ों से उन कलाचार्य का सत्कार सम्मान किया तथा इतना अधिक प्रीतिदान दिया कि जो उनके समस्त जीवन के लिए पर्याप्त था। इस प्रकार दान देकर उन्हें विदा किया।
विवेचन - कलाचार्य ने सुबाहुकुमार को ७२ कलाएं सिखा कर तथा उनका अच्छी तरह अभ्यास करा कर उसके माता पिता को सौंप दिया। उसके माता-पिता ने वस्त्र आभूषण आदि से कलाचार्य का सत्कार सम्मान किया और इतना धन दिया कि जो उनके समस्त जीवन के लिए पर्याप्त था। इस प्रकार उन्हें सम्मान पूर्वक विदा कर दिया।
माता-पिता द्वारा महलों का निर्माण .. तएणं से सुबाहुकुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्त पडिबोहिए अट्ठारस विहिप्पगारदेसी भासा विसारए गीयरई गंधव्वणकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलं भोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था। तएणं तस्स सुबाहुकुमारस्स अम्मापियरो सुबाहुंकुमारं बावत्तरिकला पंडियं जाव वियालचारी. जायं पासंति, पासित्ता पंचसयपासायवडिंसए करेंति अब्भुग्गयमूसिय पहसिय विव मणिकणगरयणभत्तिचित्ते वाउद्भूय-विजयवेजयंतीपडागा छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे जालंतररयण पंजरुम्मिल्लियव्य मणिकणगथूभियाए वियसियसयपत्तपुंडरीए तिलयरयणद्धयचंदच्चिए णाणामणिमयदामालंकिए अंतो बहिं च सण्हे तवणिज्जरुइलवालुयापत्थरे सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तेसिणं पासायवडिंसगाणं बहुमज्झदेसभागे एगं च णं महं भवणं करेंति अणेगखंभसयसण्णिविटुं लीलट्टियसालभंजियागं अब्भुग्गयसुकयवयरवेइयातोरणं
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