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प्रथम अध्ययन - भगवान् महावीर स्वामी का वर्णन
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बिम्ब फल के समान लाल उनका अधरौष्ठ-नीचे का ओठ था, पंडुर-ससि-सयल विमलणिम्मल-संख-गोखीर-फेण-कुंद-दगरय-मुणालिय-धवलदंतसेढी - स्वच्छ चन्द्रमा, अत्यंत निर्मल शंख, गाय के दूध का फेन, कुन्द पुष्प, जल का वेग और कमल नाल के समान सफेद दांतों की पंक्ति, अखंडदते - अखंड दांत-बिना टूटे हुए दांत, अप्फुडियदंते - उनके दांत छिदरे-विशेष दूरी वाले नहीं थे, एगदंतसेढी विव अणेगदंते - एक दांत की पंक्ति की तरह ही अनेक दांत थे, हुयवहणिद्धंत धोयतत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहे - अग्नि से निर्मल किये हुए, पानी से धोये हुए तथा फिर से अग्नि में तपाये हुए सोने के समान लाल तालु और जिह्वा वाले।
भावार्थ - उस काल उस समय में अर्थात् चौथे आरे में जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी इस भूतल पर विचरते थे वे श्रमण भगवान् महावीर कैसे थे? सो उनके विशेषण बतलाये जाते हैं - धर्म की आदि करने वाले, साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले यावत् सिद्धि गति नामक स्थान को पाने की इच्छा वाले अरिहंत, राग द्वेष को जीतने वाले केवलज्ञानी, सात हाथ की अवगाहना वाले, समचतुरस्र संस्थान वाले, वज्रऋषभनाराच
संहनन वाले, शरीर के अंदर की अनुकूल वायु के वेग वाले, कंक पक्षी की तरह नीरोग शरीर . वाले, कबूतर की तरह तीव्र जठराग्नि वाले, शकुनि पक्षी की तरह निर्लेप गुदा वाले, पीठ
पसवाडे और जांघों के सुंदर आकार वाले, पद्म और नीले कमल के समान सुगंधित निःश्वास वाले, उत्तम वर्ण और कोमल त्वचा वाले, नीरोग और उत्तम सफेद तथा निरुपम मांस वाले, मैल, अशुभ तिलक आदि पसीना और धूल आदि की मलिनता से रहित अतएव निर्मल शरीर वाले, कांति की चमक से युक्त शरीर वाले, लोह के घन के समान दृढ़ स्नायु बन्धन वाले तथा शुभ लक्षणों वाले, पर्वत के शिखर के समान उन्नत शिर वाले थे। उनके शिर के बाल आक की रुई के समान नरम, स्वच्छ, शुभ चिकने और शुभ लक्षणों से युक्त थे। वे सुगंधित और सुंदर थे। भुजमोचक रत्न, भृङ्ग नील, काजल और मदोन्मत्त भ्रमरों के समूह के समान काले थे। दाहिनी ओर मुड़े हुए सघन और चूंघराले थे। उनके मस्तक की चमड़ी अनार के फूल और तपे हुए सोने की तरह लाल, निर्मल और चिकनी थी। उनका मस्तक भरा हुआ और छत्र के समान उन्नत था। उनका ललाट निव्रण यानी घाव रहित था, एक समान, मनोज्ञ और दीप्त था उसका आकार अर्द्धचन्द्र के समान था। उनका मुख पूर्ण चन्द्रमा के समान सौम्य था। उनके कान ठीक प्रमाण युक्त थे और बड़े सुंदर थे। उनके कपोल स्थूल यानी पुष्ट थे। उनकी भौहें, नसे हुए धनुष के समान थे और काले बादल की तरह काले और स्निग्ध थे। उनके नेत्र खिले हुए कमल
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