________________
- प्रथम अध्ययन - भगवान् महावीर स्वामी का वर्णन
२६७ ........................................................... सण्णयपासे संगयपासे सुंदरपासे सुजायपासे मियमाइय-पीण-रइयपासे उज्जुयसमसहियजच्चतणुकसिणणिद्ध आइज्जलउह-रमणिज्जरोमराई झसविहगसुजायपीणकुच्छी झसोयरे सुइकरणे पउमवियडणाभी गंगावत्तग-पयाहिणावत्ततरंगभंगुर-रवि-किरण तरुणबोहिय कोसायंत-पउमगंभीर-वियडणाभी साहयसोणंदमुसलदप्पणणिकरियवरकणगच्छरु-सरिसवरवइर-वलिय-मज्झे पमुइयवरतुरग सीहवर-वट्टिय-कडी वरतुरगसुजायसुगुज्झदेसे आइण्णहउव्वणिरुवलेवे वरवारण-तुल्लविक्कम-विलसियगई गय-ससणसुजाय-सण्णिभोरु-समुग्गणिमग्गगूढजाणू एणीकुरुविंदावत्तवट्टाणु पुव्वजंघे संठिय-सुसिलिट्ठ विसिट्ठगूढगुप्फे सुप्पइट्ठियकुम्मचारुचलणे अणुपुव्वसुसंहयंगुलीए उण्णयतणुतंबणिद्धणक्खे रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमाल कोमलतले अट्ठसहस्सवर-. पुरिसलक्खणधरे णग-णगर-मगर-सागर-चक्कंक-वरंकमंगलंकिय-चलणे विसिहरूवे हुयवहणिभूमजलियतडियतरुण रवि किरण सरिस तेए॥२०६॥
कठिन शब्दार्थ - अवडियसुविभत्तचित्तमंसू - दाढी और मूंछ के बाल अवस्थित और • . शोभनिक, मंसलसंठियपसत्थसहूलविउलहणूए - मांसल-भरी हुई, शुभलक्षण युक्त और सिंह की दाढी की तरह विस्तीर्ण दाढ़ी, चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसग्गीवे - चार अंगुल प्रमाण और शंख जैसी उत्तम गर्दन, वरमहिसवराह सीहसहूल उसभणागवरपडिपुण्ण विउलक्खंधे - महिष, सूअर, शार्दुल सिंह, बैल और गजेन्द्र के कंधों के समान यथाप्रमाण और विस्तीर्ण कंधे, जुगसण्णिभपीणरइयपीवरपउट्ठ-सुसंठिय-सुसिलिट्ठ-विसिड्डयणथिर-सुबद्धसंथिपुरवर फलिहवट्टियभूए - उनके कन्धे यज्ञ के स्तंभ के समान लम्बे, चौड़े, मोटे और मनोहर थे, उनके हाथ की कलाई मोटी, सुंदर आकार वाली, सुसंगत, उत्तम, पुष्ट, स्थिर और मजबूत जोड़ वाली थी, भुअईसर विउलभोग अयाणफलिहउच्छूडवीहबाहू - भुजाएं नगर के किंवाड़ की आगल के समान ऐसी मालूम पड़ती थी जैसे अपने इच्छित स्थान को जाते हुए नागराज का शरीर हो, रत्ततलोवइयमउयमंसल सुजायलक्खणपसत्थ अच्छिइजालपाणी - उनकी हथेली उन्नत, कोमल, लाल, मांसल यानी पुष्ट सुंदर और सामुद्रिक शास्त्र के शुभ चिह्नों से युक्त थी। उनकी अंगुलियों के बीच में छेद नहीं थे, पीवरकोमलवरंगुली - स्थूल, कोमल और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org