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प्रथम अध्ययन - सुबाहुकुमार का पत्नियों को प्रीतिदान
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सूत्र में कहा है उसी प्रकार यावत् पांच सौ सरसों के बर्तन, पांच सौ कुबडी दासियाँ, इसके अलावा जिस प्रकार औपपातिक सूत्र में कहा है उसी प्रकार पांच सौ पारसी दासियों तक कह देना चाहिये। पांच सौ छत्र, पांच सौ छत्र ग्रहण करने वाली दासियाँ, पांच सौ चंवर, पांच सौ चंवर ढोलने वाली दासियाँ, पांच सौ पंखे, पांच सौ पंखे झलने वाली दासियाँ, पांच सौ पानदान उठाने वाली दासियाँ, पांच सौ दूध पिलाने वाली धाएं यावत् पांच सौ गोद में खिलाने वाली धाएं, पांच सौ अंग को मलने वाली दासियाँ पांच सौ मर्दन करने वाली दासियां, पांच सौ स्नान कराने वाली दासियां, पांच सौ श्रृंगार कराने वाली दासियाँ, पांच सौ चंदन आदि को घिसने वाली दासियां, पांच सौ सुगंधित द्रव्यों का पूर्ण पीसने वाली दासियां, पांच सौ क्रीडा कराने वाली दासियाँ, पांच सौ मनोरंजन कराने वाली दासियाँ, पांच सौ राजसभा में बैठने के समय साथ रहने वाली दासियाँ, पांच सौ नाटक संबंधी दासियाँ, पांच सौ चपरासी का काम करने वाली दासियाँ, पांच सौ रसोई बनाने वाली दासियाँ, पांच सौ भण्डार की रखवाली करने वाली दासियाँ, पांच सौ बालकों को खिलाने वाली दासियाँ, पांच सौ फूलमालाओं को लाने वाली दासियाँ, पांच सौ जलधर की देखभाल करने वाली दासियाँ, पांच सौ बलि करने वाली दासियाँ, पांच सौ बिछौना बिछाने वाली दासियाँ, पांच सौ आभ्यंतर परिचारिकाएं, पांच सौ बाहर की परिचारिकाएं, पांच सौ माला गूंथने वाली दासियाँ, पांच सौ पिसने वाली दासियाँ, इसके अलावा बहुत सी चांदी, कांसा, वस्त्र और विपुल धन, सोना, रत्नमणि, मोती, शंख, शिलप्रवाल, रक्त रत्न तथा और भी विद्यमान उत्तम उत्तम वस्तुएं दीं। वे वस्तुएं इतनी पर्याप्त थीं कि यावत् सात पीढ़ी तक खूब दानं दिया जाय, खूब उपभोग किया जाय और हिस्सेदारों को खूब बांटा जाय तो भी समाप्त न हो। - विवेचन - सुबाहुकुमार के माता-पिता ने अपनी पांच सौ पुत्रवधुओं को उपरोक्त प्रकार से १९२ बोल का प्रीतिदान दिया।
। सुबाहुकुमार का पत्नियों को प्रीतिदान ।
तए णं से सुबाहुकुमारे एगमेगाए भज्जाए एगमेगं हिरण्णकोडिं दलयइ, एगमेगं सुवण्णकोडिं दलयइ एगमेगं मउडं दलयइ एवं चेव सव्वं जाव एगमेगं पेसणकारी दलयइ। अण्णं च सुबहुं हिरण्णं जाव परिभाएउं॥२०३॥
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