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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध '
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_ भावार्थ - इसके पश्चात् उस सुबाहुकुमार ने प्रत्येक भार्या के लिए एक-एक करोड़ चांदी के सिक्के, एक-एक करोड़ सोने के सिक्के तथा एक-एक मुकुट दिये। इस प्रकार एक-एक भार्या के लिए यावत् पीसने वाली एक-एक दासी तक सब एक-एक पदार्थ दिये और दूसरे बहुत से चांदी सोने के पदार्थ दिये। वे इतने थे कि सात पीढ़ी तक खूब दान दिया जाय, उपभोग किया जाय और यावत् हिस्सेदारों को बांटा जाय तो भी समाप्त न हो।
विवेचन - जिस प्रकार सुबाहुकुमार के माता पिता ने अपनी पुत्र वधुओं को प्रीतिदान दिया था उसी प्रकार सुबाहुकुमार ने भी अपनी भार्याओं को प्रीतिदान दिया।
___ सांसारिक सुखोपभोग तए णं से सुबाहुकुमारे उप्पिं पासायवरगए फुटमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसतिबद्धेहिं णाडएहिं णाणाविहवरतरुणी. संपउत्तेहिं उवणच्चिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे पाउसवासारत्तं सरद हेमंत वसंत गिम्ह पज्जंते छप्पिं उउ जहा विभवेणं माणमाणे माणमाणे कालं गालेमाणे गालेमाणे इटे,सद्द-फरिस-रसरूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ॥२०४॥
कठिन शब्दार्थ - उप्पिं-पासायवरगए - ऊपर के महल में रहता हुआ, मुइंगमत्थएहिंमृदङ्गों के मस्तक, फुडमाणेहिं - स्फुटित होते हुए, बत्तीसतिबद्धेहिं - बत्तीस प्रकार के, णाडएहिं- नाटक, णाणाविहवरतरुणी संपउत्तेहिं - अनेक तरुणी रमणियों से युक्त, उवणच्चिज्जमाणे - नृत्य करवाता हुआ, उवगिज्जमाणे - गायन करवाता हुआ, उवलालिज्जमाणो - अभीष्ट अर्थ संपादन करवाता हुआ, पाउस - प्रावृत ऋतु, वासारत्त - वर्षा ऋतु, गिम्हपज्जते - ग्रीष्म ऋतु तक, उउ - ऋतुओं में, जहा विभवेणं - ऐश्वर्य के अनुसार, माणमाणे - आनंदानुभव करता हुआ, गालेमाणे - व्यतीत करता हुआ, पच्चणुब्भवमाणे - भोगता हुआ। __भावार्थ - इसके बाद वह सुबाहुकुमार ऊपर के महल में रहता हुआ मृदंगों के मस्तक स्फुटित होते हुए अर्थात् मृदङ्गों की ध्वनि सहित बत्तीस प्रकार के नाटक और अनेक तरुणी रमणियों से युक्त नृत्य करवाता हुआ, 'गायन करवाता हुआ अभीष्ट अर्थ संपादन करवाता हुआ
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