Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 279
________________ २५८ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध युक्त, आणिल्लियाणं - लाई गई, पंचसयहिरण्णकोडीओ - पांच सौ कोटि चांदी के सिक्के, मउडप्पवरे- उत्तम मुकुट, कुंडलजुयप्पवरे - उत्तम कुण्डलों के जोड़े, एगावलीप्पवराओउत्तम एकावली हार, कडगजोयप्पवरे - उत्तम कड़े, खोमजुयलप्पवराई- उत्तम कपास के वस्त्र के जोड़े, तलप्पवरे - ताल वृक्ष के उत्तम पंखे, णियगवरभवणकेऊ - प्रधान भवनों के लिए पताकाएं, दसगोसाहस्सिएणं - दस हजार गायों का, वएणं - वज्र-एक गोकुल, बत्तीसबद्धणं णाडएणं - बत्तीस बत्तीस पात्र वाले, सव्वरयणामए - सभी रत्नों के बने हुए, सिरिघरपडिरूवए - लक्ष्मी के भण्डार स्वरूप, पंचसयजुग्गाई - पांच सौ युग्य यानी गोल्लदेश में प्रसिद्ध दो हाथ का लम्बा चौड़ा यान विशेष, संदमाणीओ - पुरुष प्रमाण पालखी, गिल्लीओहाथी के होदे, थिल्लीओ - घोड़ों की बग्घियाँ, कंचुइज्जे - कञ्चुकी यानी अन्तःपुर का चपरासी, वरिसधरे - वर्षधर-खोजा, जो अंत:पुर में कार्य करते हैं, महत्तरए - महत्तरकअन्तःपुर के कार्य की चिंता करने वाले, पंचसयसुवण्णरुप्पामए ओलंबणदीवे - पांच सौ सोने और चांदी की सांकल वाले दीपक, पंचसयसुवण्णरुप्पामयाओ पत्तीओ - पांच सौ सोने और चांदी की परात, पंचसयसुवण्णारुप्पामयाई थासणाई - पांच सौ सोने चांदी के तासकदर्पण के आकार के पात्र विशेष, मल्लगाई - कटोरे, तलियाओ -कटोरियां, कइवियाओ - पीकदान, अवएडए - तालिका हस्त-एक प्रकार का पात्र, अवयक्काओ - अवपाक्य-तवा, पायपीढए - बाजोठ, भिसियाओ - आसन, करोडियाओ - पान दान, पल्लके - पलंग, .. पडिसेज्जाओ- प्रतिशय्या-छोटे पलंग, उण्णयासणाई - उन्नत यानी ऊंचे आसन, पणयासणाईढालू आसन, दीहासणाई - दीर्घासन, पक्खासणाई - पक्षासन-पक्षियों के चित्रों से चित्रित आसन, विउलधणकणगरयणमणिमोत्तिय संखसिलप्पवालरत्तरयण संतसारसावइज्जं - विपुल धन, सोना, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिलप्रवाल, रक्तरत्न तथा और भी विद्यमान उत्तम उत्तम चीजें, अलाहि - इतनी पर्याप्त थी कि, आसत्तमाओ कुलवंसाओ - सात पीढ़ी तक, पगामं दाउं - खूब दान दिया जाय, पगामं परिभोत्तुं- खूब उपभोग किया जाय, पगामं परिभाएउं - खूब हिस्सेदारों को बांटा जाय। . भावार्थ - इसके पश्चात् किसी एक समय शुभ तिथि, करण, दिन, नक्षत्र और मुहूर्त में जब सुबाहुकुमार स्नान, तिलक छापा आदि कार्य कर चुका, विघ्न आदि की शांति के लिए मांगलिक कार्य और कौतुक आदि कर चुका। सब अलंकारों से विभूषित हुआ। सुहागिन स्त्रियों से मर्दन गीत, वादिन्त्र, मंडन और आठों अंगों पर तिलक लगवाया गया तथा कंकण बंधवाया . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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