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प्रथम अध्ययन - अनेक संस्कार
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आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा एवं च णं विहरेंति॥१६५॥
- कठिन शब्दार्थ - जाएहिं - याचकों-भिखारियों के लिए, दाएहिं - दानों के लिए, भागेहि-भोगेहिं - परस्पर विभाग करने के लिए अथवा आहार के लिए, सइएहिं - सैकड़ों, सहस्सिएहिं - हजारों, सयसहस्सिएहिं - लाखों, दलयमाणे - दान देता हुआ, पडिच्छेमाणेबारम्बार दान देता हुआ, जायकम्मं - जातकर्म-जन्म के समय की क्रियाएं, जागरियं - रात्रि जागरण, चंदसूरदंसणियं - चन्द्र सूर्य का दर्शन, सुइजायकम्मकरणे - जन्म संबंधी कार्यों से, णिव्वत्ते - निवृत्त होने पर, उवक्खडावेंति - बनवाया, मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधिपरिजणं- मित्र, ज्ञाति (जाति), स्वजन संबंधी और परिजनों को, कयकोउय - अशुभ की निवृत्ति के लिये कौतुकादि, मांगलिक चिह्न आदि किये, आसाएमाणा - आस्वादन करते हुए, विसाएमाणा- विशेष रूप से आस्वादन करते हुए, परिभाएमाणा - परस्पर बांट कर देते हुए, परिभुंजेमाणा- उपभोग करते हुए।
भावार्थ - इसके पश्चात् वह अदीनशत्रु राजा बाहर की उपस्थान शाला-सभा में पूर्व की ओर मुंह करके सुंदर सिंहासन पर बैठा। भिखारियों के लिये, अभयदान आदि दानों के लिए और परस्पर विभाग करने के लिए अथवा आहार के लिए सैकड़ों, हजारों और लाखों द्रव्यों का दान देता हुआ तथा बारम्बार दान देता हुआ इस प्रकार विचरने लगा। .. ___ तदनन्तर उसके माता पिता ने पहले दिन में जातकर्म-जन्म के समय की क्रियाएं की। दूसरे दिन रात्रि जागरण किया। तीसरे दिन चन्द्र सूर्य का दर्शन करवाये। इस प्रकार जन्म संबंधी कार्यों से निवृत्त होने पर और बारहवां दिवस आने पर बहुत-सा अशन, पान, खादिम और स्वादिम, यह चारों प्रकार का आहार बनवाया, बनवा कर मित्र, जाति, स्वज़न संबंधी और परिजनों को
और सेना को तथा बहुत से गणनायक यावत् दण्डनायक कोटवाल आदि को आमंत्रण दिया। इसके पश्चात् उन्होंने स्नान किया, बलिकर्म यानी स्नान संबंधी कार्य किये यावत् अशुभ की निवृत्ति के लिये कौतुक आदि किये यावत् वे सर्व अलंकारों से विभूषित हुए। फिर महान् भोजन मण्डप में मित्र, ज्ञाति, गणनायक यावत् दण्डनायक आदि के साथ उस अशन, पान, खादिम
और स्वादिम पदार्थों का आस्वादन करते हुए, विशेष रूप से आस्वादन करते हुए, परस्पर बांट कर देते हुए और उपभोग करते हुए विचरने लगे।
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