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छठा अध्ययन - षड्यंत्र विफल और सजा
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किसी अन्य समय चित्र नामक नाई को बुला कर इस प्रकार कहा कि - हे भद्र! तुम श्रीदाम राजा के सर्व स्थानों, सर्व भूमिकाओं तथा अंतःपुर में स्वेच्छा पूर्वक आ जा सकते हो और श्रीदाम नरेश का बार-बार अलंकारिक कर्म करते रहते हो अतः हे देवानुप्रिय! यदि तुम श्रीदाम नरेश का अलंकारिक कर्म करते हुए उनकी ग्रीवा-गरदन में उस्तरा घोंप दोगे अर्थात् राजा का वध कर दोगे तो मैं तुम्हें आधा राज्य दे दूंगा। तदनंतर तुम हमारे साथ उदार प्रधान कामभोगों को भोगते हुए विचरण करोगे। ... तदनन्तर वह चित्र नामक अलंकारिक (नाई) नन्दिषेणकुमार के उक्त अर्थ वाले वचन को स्वीकार करता है परन्तु कुछ समय पश्चात् चित्र नामक अलंकारिक के मन में इस प्रकार के विचार उत्पन्न हुए कि यदि किसी प्रकार से श्रीदाम नरेश को इस बात का पता चल गया तो न
मालूम वह मुझे किस कुमौत से मारेगा - इस प्रकार के विचारों से भयभीत, त्रस्त, उद्विग्न एवं .. संजातभय हुआ वह जहाँ पर श्रीदाम नरेश थे वहाँ आता है और आकर एकांत में राजा को
हाथ जोड़ कर यावत् मस्तक पर दसों नखों वाली अंजलि करके विनयपूर्वक इस प्रकार कहा - 'हे स्वामिन्! निश्चय ही नन्दिषेणकुमार राज्य में यावत् मूछित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न .. हुआ आपको जीवन से व्यपरोपित कर अर्थात् मार कर स्वयं ही राज्यश्री-राज्य लक्ष्मी का संवर्धन कराता हुआ, पालन करता हुआ विहरण करने की इच्छा रखता है।
षड्यंत्र विफल और सजा _तए णं से सिरिदामे राया चित्तस्स अलंकारियस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते जाव साहह णंदिसेणं कुमारं पुरिसेहिं सद्धिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ। तं एवं खलु गोयमा! णंदिसेणे (पुत्ते) जाव विहरइ॥११७॥ '.
भावार्थ - तदनन्तर वह श्रीदाम राजा चित्र अलंकारिक की इस बात को सुन कर एवं अवधारण-निश्चित कर क्रोध से लाल पीला होता हुआ यावत् मस्तक में तिउड़ी चढ़ा कर यानी अत्यंत क्रोधित होता हुआ नन्दिषेण कुमार को पुरुषों के द्वारा पकड़वा लेता है, पकड़वा कर इस (पूर्वोक्त) विधान से वह मारा जाये, ऐसी राजपुरुषों को आज्ञा देता है। इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम! नंदिषेण पुत्र इस प्रकार अपने किए हुए अशुभ कर्मों के फल को भोग रहा है। . .
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