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सातवां अध्ययन - दृश्य पुरुष की दयनीय दशा
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"हे भगवन्! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के छठे अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःख विपाक सूत्र के सातवें अध्ययन का क्या भाव प्रतिपादन किया है?' इस प्रकार सातवें अध्ययन की अर्थ श्रवण की जिज्ञासा को ही सूत्रकार ने “सत्तमस्स उक्खेवओ" पदों से अभिव्यक्त किया है।
आर्य जम्बूस्वामी के उक्त प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने सातवें अध्ययन का जो वर्णन प्रारम्भ किया है वह मूलार्थ से स्पष्ट है। प्रस्तुत सूत्र में सातवें अध्ययन के प्रधान नायकों का नाम निर्देश किया है। नगर, उद्यान, यक्षायतन, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पदार्पण, उनके दर्शनार्थ परिषद् और राजा का जाना तथा धर्म श्रवण कर परिषद् का लौटना आदि वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिये।
दृश्य पुरुष की दयनीय दशा तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव जेणेव पाडलिसंडे णयरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पाडलिसंडं णयरं पुरथिमिल्लेणं दुवारेणं अणुप्पविसइ अणुप्पविसित्ता तत्थ णं पासइ एगं पुरिसं कच्छुल्लं कोढियं दाओयरियं (दोउयरियं) भगंदरियं अरिसिल्लं कासिल्लं सासिल्लं सोगिलं सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं सडियहत्थंगुलियं सडियपायंगुलियं सडिकण्णणासियं रसियाए य पूएण य थिविथिंविंतवण-मुहकिमिउत्तुयंतपगलंतपूयरुहिरं लालापगलंतकण्णणासं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले यं रुहिरकवले य किमियकवले य वममाणं कट्ठाई कलुणाई वीसराई कूयमाणं मच्छियाचडगरपहकरेणं अण्णिज्जमाणमग्गं फुट्टहडाहडसीसं दंडिखंडवसणं खंडमल्लगखंडघडहत्थगयं गेहे गेहे देहंबलियाए वित्तिं कप्पेमाणं पासइ, तया भगवं गोयमे! उच्चणीय जाव अडइ अहापज्जत्तं० गिण्हइ पाडलिसंडाओ जयराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव समणे भगवं० भत्तपाणं आलोएइ भत्तपाणं पडिदंसेइ समणेणं........अब्भणुण्णाए समाणे जाव बिलमिव पण्णगभूए अप्पाणेणं आहारमाहारेइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥१२०॥
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