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प्रथम अध्ययन - स्वप्न पाठक
room.३१
णयरस्स मज्झं मझेणं जेणेव सुमिणपाढगाणं गिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सद्दावेंति॥१८६॥ - भावार्थ - इसके पश्चात् अदीनशत्रु राजा के द्वारा इस प्रकार कहा जाने पर वे कौटुम्बिक पुरुष हर्षित यावत् संतुष्ट हृदय वाले हुए। वे लोग दोनों हाथ जोड़ कर दस नखों को यानी दसों अंगुलियों को इकट्ठा करके सिर पर आवर्तन करते हुए मस्तक पर अंजलि करके बोले कि-'हे देव! आपकी आज्ञा प्रमाण है, ऐसा ही होगा।' इस प्रकार कह कर विनयपूर्वक राजा के वचनों को सुना एवं स्वीकार किया। स्वीकार करके अदीनशत्रु राजा के पास से निकले और हस्तिशीर्ष नगर के बीचोबीच होकर जहाँ पर स्वप्न पाठकों के घर थे वहाँ पर पहुँचे, पहुँच कर स्वप्न पाठकों को बुलाया। .. विवेचन , राजा की आज्ञा पाकर सेवक हस्तिशीर्ष नगर के बीचोबीच होकर स्वप्न शास्त्रियों के घर पहुंचे वहाँ जाकर उन्हें बुलाया। ___तए णं ते सुमिणपाढगा अदीणसत्तुस्स रण्णो कोडुंबिय पुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्टतुट्ट जाव हियया बहाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता अप्पेमहग्घाभरणालंकियसरीरा हरियालिय-सिद्धत्थयकयमुद्धाणा सएहिं सएहिं गिहेहिंतो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता हत्थिसीसस्स णयरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव अदीणसत्तुस्स रण्णो भवणवडिंसग दुवारे तेणेव उवागच्छंति-उवागच्छित्ता एगयओ मिलयंति, एगयओ मिलित्ता अदीणसत्तुस्स रण्णो भवणवडिंसग दुवारेणं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसला जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अदीणसत्तु रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति। अदीणसत्तुणा रण्णा अच्चिया वंदिया पूइया माणिया सक्कारिया सम्माणिया समाणा पत्तेयं पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति॥१८७॥
- कठिन शब्दार्थ - कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता - बलिकर्म यावत् प्रायश्चित्त करके यानी ललाट पर मांगलिक तिलक और मस्तक पर दही-चावल आदि छिटक कर यावत् स्नान संबंधी सारे कार्य करके, अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा - थोड़े किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत करके, हरियालियसिद्धत्थयकयमुद्दाणा - मस्तक पर दूब और सरसों आदि रखकर, भवणवडिंसगदुवारे - महल का मुख्य द्वार, पुव्वण्णत्थेसु - पहले से रखे हुए।
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