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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ...........................................................
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स्वप्न पाठकों को बुलावा .. अंछावित्ता अच्छरगमउय-मसूरग-उच्छइयं धवलवत्थपच्चुत्थुयं विसिटुं अंगसुहफासयं सुमउयं धारिणीए देवीए भद्दासणं रयावेइ रयावित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दांवित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अटुंगमहानिमित्त सुत्तत्थपाढए विविह-सत्थकुसले सुमिणपाढह सद्दावेह, सदावित्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ॥१५॥ ____ कठिन शब्दार्थ - अच्छरगमउयमसूरगउच्छइयं - उस भद्रासन पर सुकोमल गलीचा बिछाया गया, धवलवत्थपच्चत्थुयं - सफेद वस्त्र बिछाया गया, अंगसुहफासयं - शरीर को आराम पहुंचाने वाला, विविहसत्थकुसले - विविध शास्त्रों में कुशल, अटुंगमहानिमित्त सुत्तत्थपाढए - अष्टाङ्ग महानिमित्त-ज्योतिष शास्त्र के अर्थ को जानने वाले, सुमिणपाढह -. स्वप्न पाठकों को।
- भावार्थ - पर्दा डलवा कर महारानी धारिणी के लिए एक विशिष्ट भद्रासन रखवाया। उस भद्रासन पर सुकोमल गलीचा बिछाया गया और उस पर एक सफेद वस्त्र बिछाया गया। वह अंत्यंत सुकोमल था। सुकोमल होने से शरीर को आराम पहुंचाने वाला था। भद्रासन रखवा कर राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा कि - हे देवानुप्रियो! शीघ्र ही विविध शास्त्रों में कुशल अष्टाङ्ग महानिमित्त यानी ज्योतिष शास्त्र के अर्थ को जानने वाले स्वप्नपाठकों को बुलाओ और बुलाकर यह मेरी आज्ञा मुझे वापिस सोपों अर्थात् मेरी आज्ञानुसार कार्य करके मुझे सूचित करो।
विवेचन - राजा ने धारिणी रानी के बैठने के लिए सुन्दर भद्रासन रखवाया और फिर अष्टाङ्ग महानिमित्त कुशल स्वप्न पाठकों को बुलाने के लिए नौकरों को आज्ञा दी।
तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा अदीणसत्तुणा रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ट तुट्ठ जाव हियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं देवो तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता अदीणसत्तुस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता हत्थिसीसस्स
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