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• विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
हार यानी अठारह लड़ा हार, अर्द्धहार यानी नवलड़ा हार और तीन लड़ा हार पहना। कमर में लम्बा और लटकते हुए झूमके वाला कन्दोरा पहना, गले में आभूषण पहने, अंगुलियों में अंगुठियां पहनी और बहुत से सुंदर सुंदर आभूषण धारण किये। अनेक प्रकार की मणियां और कंकण आदि आभूषणों से हाथ और भुजाओं को अलंकृत किया, आभूषणों को धारण करने से उसका रूप अधिक शोभायमान होने लगा। कानों में कुंडल धारण करने से मुंह चमकने लगा। मस्तक पर मुकुट धारण किया, हारों से वक्षस्थल के ढक जाने से सुंदर मालूम होने लगा। एक लटकता हुआ लम्बा-सा बढिया दुपट्टा धारण किया, अंगुलियां अंगुठियों से पीली हो गई। चतुर कारीगरों द्वारा बनाये गये नाना प्रकार के विमल, विशिष्ट, मनोहर, देदीप्यमान, अच्छे जोड़ वाले बहुमूल्य मणिरत्नों से युक्त सोने के वीरवलय यानी विजयसूचक कड़े धारण किये। अधिक क्या कहा जाय? कल्पवृक्ष के समान आभूषणों से अलंकृत और वस्त्रों से विभूषित कोरण्टक वृक्ष के फूलों का मालाओं से बने हुए छत्र को धारण करने वाला दोनों तरफ चार चामर जिसके शरीर पर दुलाये जा रहे हैं ऐसा और जिसे देखकर लोग जय जय शब्द कर रहे हैं ऐसा मनुष्यों में इन्द्र के समान अनेक गणनायक, दण्डनायक, माण्डलिक राजा और युवराज, तलवर यानी राजा द्वारा उपाधि प्राप्त कोटवाल, माडम्बिक यानी मुकुटबंध राजा, कौटुम्बिक यानी कुछ कुटुम्बों के स्वामी मन्त्री, महामंत्री, गणितज्ञ यानी गणित शास्त्र के जानकार, दौवारिक यानी दरबान, अमात्य यानी राज्य के अधिष्ठाता, सेवक, पीठमर्दक यानी समान उम्र वाले मित्र, नगर निवासी प्रजानन, राजकर्मचारी, सेठ, सेनापति, सार्थवाह, दूत और संधिपाल-संधि की रक्षा करने वाले, इन पुरुषों के साथ घिरा हुआ प्रियदर्शन वाला वह राजा ग्रहगण से दीप्त आकाश में स्थित तारागणों के बीच में उज्ज्वल और बड़े बड़े बादलों में से निकले हुए चन्द्रमा के समान वह राजा स्नानघर से निकला, निकल कर जहां पर बाहरी उपस्थानशाला यानी सभा है वहां पर आया, आकर पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके सिंहासन पर बैठा। ___ विवेचन - व्यायामशाला में प्रवेश कर राजा ने व्यायाम की। व्यायाम से थक जाने पर सुगंधित तेल से मालिश करवाई फिर अङ्गमर्दन करवाया। थकान दूर होने के पश्चात् राजा ने उत्तम रीति से बने हुए सुंदर स्नानघर में प्रवेश किया। अनेक प्रकार के सुगंधों से सुगंधित जल से स्नान किया फिर नवीन वस्त्र पहने और राजा के योग्य आभूषण धारण किये फिर स्नान घर से निकल कर मंत्री, महामंत्री, प्रजानन तथा सेवकों आदि से घिरा हुआ राजा बाहरी सभा भवन में आया। वहां आकर पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके सिंहासन पर बैठ गया।
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