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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध •orost.... ............................................. अटुंगाउव्वेयपाढए, तंजहा-कुमारभिच्चं १ सालागे २ सल्लहत्ते ३ कायतिगिच्छा ४ जंगोले ५ भूयविज्जे ६ रसायणे ७ वाजीकरणे ८ सिवहत्थे सुहहत्थे लहुहत्थे।
तए णं से धण्णंतरी वेज्जे विजयपुरे णयरे कणगरहस्स रपणो अंतेउरे य . अण्णेसिं च बहूणं राईसर जाव सत्थवाहाणं अण्णेसिं च बहूणं दुब्बलाण य गिलाणाण य वाहियाण य रोगियाण य अणाहाण य सणाहाण य समणाण य माहणाण य भिक्खगाण य करोडियाण य कप्पडियाण य आउराण य अप्पेगइयाणं मच्छमंसाइं उवदिसइ अप्पेगइयाणं कच्छ भमंसाई (उवदि०) अप्पेगइयाणं गाहमंसाई अप्पेगइयाणं मगरमंसाइं अप्पेगइयाणं सुसुमारमंसाई अप्पेगइयाणं अयमसाइं एवं एलय-रोज्झ-सूयर-मिग-ससय-गोमंस-महिसमसाई अप्पेगइयाणं तित्तरमंसाई अप्पेगइयाणं वट्टक-लावक़-कवोय-कुक्कुड-मयूरमंसाई अण्णेसिं च बहूणं जलयरथलयरखहयरमाईणं मंसाई उवदिसइ अप्पणावि य णं से धण्णंतरी वेज्जे तेहिं बहूहि मच्छमंसेहि य जाव मयूरमंसेहि य अण्णेहि य बहूहिं जलयरथलयरखहयरमंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च ६ आसाएमाणे विसाएमाणे विहरइ॥१२२॥
कठिन शब्दार्थ - वेज्जे - वैद्य, अटुंगाउव्वेयपाढए - अष्टांग आयुर्वेद का अर्थात् आयुर्वेद के आठों अंगों का पाठक-ज्ञाता जानकार, कुमारभिच्चं - कौमारभृत्य-आयुर्वेद का एक अंग जिसमें कुमारों के दुग्धजन्य दोषों का उपशमन प्रधान वर्णन हो, सालागे - शालाक्यआयुर्वेद का अंग जिसमें शरीर के नयन, नाक, आदि ऊर्ध्व भागों के रोगों की चिकित्सा का विशेष रूप से प्रतिपादन किया गया हो, सल्लहत्ते - शाल्यहत्य-आयुर्वेद का एक अंग जिसमें शल्य-कण्टक गोली आदि निकालने की विधि का वर्णन हो, कायतिगिच्छा - कायचिकित्साशरीर गत रोगों की प्रतिक्रिया-इलाज तथा उसका प्रतिपादक आयुर्वेद का एक अंग, जंगोले - जांगुल-आयुर्वेद का एक विभाग जिसमें विषों की चिकित्सा का विधान है, भूयविज्जा - भूत विद्या-आयुर्वेद का वह विभाग जिसमें भूत निग्रह का प्रतिपादन किया गया है रसायणे - रसायन आयु को स्थिर करने वाली और व्याधि विनाशक औषधियों के विधान करने वाला आयुर्वेद का एक अंग, वाजीकरणे - वाजीकरण-बलवीर्य वर्द्धक औषधियों का विधान करने
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