________________
१७८
विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
. सिंहसेन का प्रयास तए णं से सीहसेणे राया सामं देवि एवं वयासी-मा णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहय० जाव झियाहि, अहं णं तहा जत्तिहामि जहा णं तव णत्थि कत्तोवि सरीरस्स आबाहे वा पबाहे वा भविस्सइ तिकटु ताहिं इटाहिं ६ समासासेइ, समासासेत्ता तओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! सुपइट्ठस्स जयरस्स बहिया एगं महं कूडागारसालं करेह अणेगक्खंभसयसंणिविटै पासाईयं दरिसणिजं अभिरूवं पडिरूवं करेह, करेत्ता ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुंरिसा करयल जाव पडिसुणेति पडिसुणेत्ता सुपइट्टणयरस्स बहिया पच्चत्थिमे दिसीभाए एगं महं कूडागारसालं जाव करेंति अणेगक्खंभसय-संणिविटुं पासाईयं ४ जेणेव सीहसेणे. राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति॥१५०॥
कठिन शब्दार्थ - जत्तिहामि - यत्न करूंगा, आबाहे - आबाधा-ईषत् पीड़ा, पबाहे - प्रबाधा-विशेष पीड़ा, समासासेइ - सम्यक्त्या आश्वासन देता है-शांत करता है, कूडागारसालंकूटाकारशाला-षड्यंत्र करने के लिये बनाया जाने वाला घर, अणेगखंभसयसंणिविटुं - सैंकड़ों स्तंभ-खंभे हों जिसके।
भावार्थ - तदनन्तर वह सिंहसेन राजा श्यामा देवी से इस प्रकार बोला-हे देवानुप्रिय! तुम इस प्रकार निराश होकर आर्तध्यान मत करो। मैं ऐसा उपाय करूँगा जिससे तुम्हारे शरीर को कहीं से भी किसी प्रकार की बाधा तथा प्रबाधा नहीं होगी-इस प्रकार श्यामादेवी को इष्ट आदि वचनों द्वारा सांत्वना देकर सिंहसेन राजा वहाँ से चले गये और जाकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा - हे देवानुप्रियो! तुम लोग यहाँ से जाकर सुप्रतिष्ठित नगर के बाहर एक बहुत बड़ी कूटाकारशाला बनवाओ जो कि सैंकड़ों स्तंभों से युक्त प्रासादीय (मन को हर्षित करने वाली) दर्शनीय (बार-बार देख लेने पर भी जिससे आंखें न थकें) अभिरूप (जिसे एक बार देख लेने पर भी पुनः दर्शन की लालसा बनी रहे) तथा प्रतिरूप (जिसे जब भी देखा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org