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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
दिया था। उसने कण्टकों का मान भंग कर दिया था, उसने कंटकों को देश निकाला दे दिया था अतः वह कण्टकों से रहित था। उसने शत्रुओं को दबा दिया था, उसने शत्रुओं का नाश कर दिया था, शत्रुओं का गर्व मिटा दिया था, शत्रुओं को देश निकाला दे दिया था, शत्रुओं को. जीत लिया था, शत्रुओं को पराजित कर दिया था। वहां नगर में कभी दुष्काल नहीं पड़ता था, महामारी आदि का भय न था, सब तरह कुशल था। शिव अर्थात् निरुपद्रव था। वहां सदा सुभिः'-सुकाल रहता था। राजकुमार आदि द्वारा होने वाले उपद्रवों को राजा ने शांत कर दिया था। इस प्रकार के राज्य पर वह राजा शासन करता था।
अर्थात् अदीनशत्रु राजा, राजा के सब गुणों से युक्त था। वह प्रजा का पुत्रवत् पालन करता था। इसी कारण उसकी सारी प्रजा खुश थी और उसे मन से चाहती थी। वह न्याय नीतिपूर्वक राज्य करता था।
उस अदीनशत्रु राजा के धारिणी प्रमुख एक हजार रानियों का अन्तःपुर था। उनमें धारिणी पटरानी थी। उस अदीनशत्रु राजा की धारिणी रानी कैसी थी, उसका वर्णन किया जाता है।
धारिणी रानी का वर्णन तस्स णं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणी णामं देवी सुकुमाल-पाणिपाया अहीणपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माणप्पमाण-पडिपुण्णसुजाय-सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार-कंतपियदंसणा सुरूवा करयल-परिमिय-पसत्थ-तिवलिय-वलियमज्झा कुंडलुल्लिहिय-गंडलेहा कोमुइरयणियरविमल पडिपुण्ण-सोमवयणा सिंगारागार-चारुवेसा, संगयगय-हसिय-भणिय-विहिय-विलास-सललिय-संलाव-णिउणजुत्तोवयार कुसला पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। __ अदीणसत्तुएणं रण्णा सद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इढे सद्दफरिस-रस-रूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणी विहरइ॥१७१॥
कठिन शब्दार्थ - सुकुमालपाणिपाया - सुकोमल हाथ पैर वाली, अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरा - अन्यून-प्रतिपूर्ण पांचों इन्द्रियों से युक्त शरीर, लक्खणवंजणगुणोववेया -
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