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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध' .0000000000000000000000000000000000000000..................
अदीनशत्रु राजा के द्वारा ऐसी आज्ञा पाने पर हर्षित और तुष्ट हुए उन सेवकों ने यावत् आज्ञानुसार कार्य करके राजा को सूचित किया। तत्पश्चात् रात्रि के व्यतीत हो जाने पर कोमल उत्पल और कमलों को विकसित करने वाले श्वेत प्रभात के होने पर लाल अशोक का प्रकाश, केसूडे (पलाश) का फूल, तोते की चोंच, चिरमटी का आधा लाल हिस्सा, बंधुजीवक, कबूतर . के पैर और नेत्र, कोयल के लाल नेत्र, जवा कुसुम, जलती हुई अग्नि, सोने का कलश, हिंगलू का समूह इन सब के रूप (प्रभा) से भी अधिक प्रभा और शोभा वाले सूर्य के यथाक्रम से उदित होने पर, सूर्य की किरणों के गिरने से अंधकार का विनाश प्रारंभ होने पर, बाल सूर्य के प्रकाश रूपी कुंकुम से जीव लोक के रंगे जाने पर, लोक में देखे जा सकने वाले विषय यानी. पदार्थों का स्पष्ट प्रतिभास होने पर कमलों के विकसित करते हुए और तेज से चमकते हुए हजार किरणों वाले दिनकर-सूर्य के उदय होने पर राजा अदीनशत्रु शय्या से उठा, उठ कर जहां व्यायामशाला थी, वहां पर गया। ___ उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायाम: जोग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागेहिं सहस्सपागेहि सुगंधवरतेल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मदणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदिय-गाय-पल्हायणिज्जेहिं अन्भंगएहिं अन्भंगिए समाणे तेलचम्मंसि पडिपुण्ण-पाणिपाय-सुकुमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पट्टे हिं कुसलेहि मेहावीर्हि जिउणेहिं णिउणसिप्पोवगएहिं जियपरिस्समेहि अभंगणपरिमद्दण उव्वट्टणकरणगुण णिम्माएहिं अहिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगयपरिसमे णरिंदे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ॥१२॥ . कठिनं शब्दार्थ - अदृणसालं - व्यायामशाला में, अणेगवायाम-जोग-वग्गण-वामहणमल्लजुद्धकरणेहिं - व्यायाम के अनेक प्रयोग वल्गन (उछलना) व्यामर्दन (परस्पर बाहु आदि को मोड़ना) परस्पर मल्ल युद्ध आदि के करने से, संते - श्रांत-थक जाने पर, परिस्संते - परिश्रांत-विशेष थक जाने पर, पीणणिज्जेहिं -- शरीर की सब धातुओं को समान करने वाले, दीवणिज्जेहिं - जठराग्नि को दीप्त करने वाले, दप्पणिज्जेहिं - बल को बढ़ाने वाले,
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