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प्रथम अध्ययन - राजा का आदेश
२२५ ........................................................... मदणिज्जेहिं - काम को बढ़ाने वाले, विहणिज्जेहिं - मांस को बढ़ाने वाले, सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं - पांचों इन्द्रियों और शरीर को सुख पहुंचाने वाले, अब्भंगएहिं - अब्भ्यंगनतैल आदि के लेप से, पडिपुण्णपाणिपाय सुकुमाल कोमल तलेहिं - अविकल हाथ पैर वाले और कोमल तलवे वाले, छेएहिं - अवसर को जानने वाले बहत्तर कलाओं को जानने वाले, णिउणसिप्पोवगएहिं - मर्दन कार्य में सुनिपुण, जियपरिस्समेहिं - परिश्रम से नहीं थंकने वाले, अब्भंगणपरिमद्दण-उव्वदृण-करणगुणणिम्माएहिं - लेप, मालिश और उबटन के अभ्यासी पुरुषों द्वारा, संबाहणाए - संबाधना यानी अंगचम्पी द्वारा।
भावार्थ - वहां जाकर राजा ने व्यायाम शाला में प्रवेश किया, प्रवेश करके व्यायाम के अनेक प्रयोग वल्गन, व्यामर्दन, परस्पर मल्लयुद्ध आदि के करने से श्रान्त और परिश्रान्त हो 'जाने पर शतपाक, सहस्रपाक वाले श्रेष्ठ सुगंधित तेल आदि से शरीर की सबं धातुओं को समान करने वाले, जठराग्नि को दीप्त करने वाले, बल को बढ़ाने वाले, काम को बढ़ाने वाले, मांस को बढ़ाने वाले, पांचों इन्द्रियों और शरीर को सुख पहुंचाने वाले, तेल आदि के लेप से अविकल हाथ पैर वाले और कोमल तलवे वाले, अवसर को जानने वाले एवं बहत्तर कलाओं को जानने वाले दक्ष, वचन चतुर अथवा आगे आगे चलने वाले कुशल बुद्धिमान् निपुण, मर्दन के कार्य में सुनिपुण, परिश्रम से न थकने वाले लेप, मालिश और उबटन के अभ्यासी पुरुषों द्वारा मालिश करवा कर और तेल चर्म यानी शरीर से मैल उतारने. के. झामे से शरीर को रगड़ाया। हड्डियों को सुख देने वाली, मांस को सुख देने वाली, त्वचा को सुख देने वाली और रोम को सुख देने वाली, इन चार प्रकार की संबाधना यानी अंगचम्पी द्वारा अंगचम्पित करवा कर थकान दूर होने पर वह राजा व्यायाम शाला से निकला। . पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समंतजालाभिरामे विचित्तमणिरयणकोट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहणिसण्णे, सुहोदगेहिं पुष्फोदगेहिं गंधोदगेहिं सुद्धोदगेहि य पुणो पुणो कल्लाणगपवर-मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहे हिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे अहयसुमहग्घ-दूसरयणसुसंवुए सरससुरभिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते
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