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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुत कन्ध .000000000000000000000000000.................... ___ भावार्थ - वहाँ आकर रानी सेज (शय्या) पर बैठ कर इस प्रकार विचार करने लगी कि मेरा वह उत्तम, प्रधान और मंगलकारी स्वप्न किसी दूसरे पाप स्वप्नों के द्वारा नष्ट न हो जाय ऐसा विचार करके वह रानी देव गुरु जन संबंधी प्रशस्त और मांगलिक धार्मिक कथाओं से अपने स्वप्न के फल को बनाये रखने के लिए जागती रही।
विवेचन - पहले शुभ स्वप्न आया हो और यदि पीछे अशुभ स्वप्न आ जाय तो पहले देखे हुए शुभ स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है। इसलिए शुभ स्वप्न देखने के पश्चात् फिर नींद नहीं लेनी चाहिये। ऐसा विचार कर धारिणी रानी ने फिर नींद नहीं ली किन्तु शेष रात्रि धर्म ध्यान में व्यतीत की।
राजा का आदेश तए णं से अदीणसत्तू राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! बाहिरियं उवट्ठणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोदयसित्तसुइय-सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्णसरसं-- सुरभि-मुक्कपुप्फ-पुंजोवयारकलियं कालागुरुपवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवडझंत-मघमघंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह . य एवमाणत्तियं पच्चप्पिणह। - तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा अदीणसत्तुणा रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठ तुट्ठा जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से अदीणसत्तू राया कल्लं पाउप्पभायाए स्यणीए फुल्लुप्पलकमल-कोमलुम्मीलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगासकिंसुय-सुयमुह-गुंजद्धराग-बंधुजीवग-पारावय-चलण-णयण-परहुयसुरत्तलोयण-जासुयणकुसुम-जलियजवण-तवणिज्ज-कलसहिंगुलयणिगररूवाइरेगरेहंत-सस्सिरीए दिवागरे अहकमेण उदिए तस्स दिणकरकरपरंपरावयारपारद्धम्मि अंधयारे बालातवकुंकुमेण खइयव्व जीवलोए लोयणविसआणुआसविगसंतविसददंसियम्मि लोए कमलागर-संडबोहए
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