Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 234
________________ - प्रथम अध्ययन - - सुरभिमुक्कपुप्फ-पुंजोवयारकलिए - पांच रंग के सरस सुगंधित फूलों से सजा हुआ, कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्क - धूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामे - अगर, चीड़, लोबान आदि उत्तम उत्तम सुगंध वाले द्रव्यों से बनी हुई धूप की लहलहाती हुई सुगंध से रमणीय, गंधवट्टिभूए - सुगंध की अधिकता होने से वह गंध की गुटिका के समान, सयणिज्जंसि - शय्या, सालिंगणव शरीर के बराबर तकिया से युक्त, विब्बोयणे तकिया लगाया हुआ, उण्ण उन्नत - ऊंची, णयगंभीरे - नीची, गंगापुलिणवालुय - उद्दालसालिसए - जैसे गंगा नदी के तट की रेत पर चलने से पैर नीचे चला जाता है वैसे ही उस शय्या पर पैर रखने से नीचे धस जाता था, उवचियखोमियदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे - कसीदा किये हुए सूती और अलसीमय वस्त्र का चादर बिछा हुआ, सुविरइयरयत्ताणे - धूलि आदि से रक्षा करने के लिए एक वस्त्र अन्य समय में उस पर ढका हुआ था, रत्तंसुय संवुए उस पर मच्छरदानी लगी हुई थी, आइणगरूयबूरणवणीयतूलफासे - विशिष्ट चर्म, रुई, बूर यानी एक प्रकार की वनस्पति विशेष, नवनीत (मक्खन) और तूल-आक की रुई के समान अतिशय कोमल, सुगंधवरकुसुमचुण्ण सयणोवयारकलिए - सुगंधि युक्त उत्तमोत्तम फूलों से, सुगंधित चूर्ण से तथा शय्या को शोभित करने वाले अन्य उत्तम पदार्थों से युक्त, सुत्तजागरा - सुप्त जागृत अवस्था में, ओहीरमाणी न गाढ निद्रा में सोती हुई और न पूर्ण जागती हुई- अर्द्ध निंद्रित अवस्था में, सस्सिरियं सश्रीक-सुंदर, महासुविणं - महान् स्वप्न, पडिबुद्धा - जागृत हुई । Jain Education International धारिणी का स्वप्न-दर्शन २१३ ❖❖❖❖ भावार्थ तदनन्तर किसी समय वह धारिणी महारानी वैसे अर्थात् पुण्यात्माओं के रहने योग्य. महल में थी। वह महल भीतर चित्रों से युक्त और बाहर घिस घिस करके सुंदर किया गया था ऊपर का भाग विविध प्रकार के चित्रों से युक्त तथा नीचे का भाग देदीप्यमान था । मणियों और रत्नों के प्रकाश से वहां का अंधकार नष्ट हो गया था। वह एकदम समतल था, ऊंचा नीचा नहीं था। पांच रंग के सरस सुगंधित फूलों से सजा हुआ था। अगर, चीड़, लोबान इत्यादि उत्तम उत्तम सुगंध वाले द्रव्यों से बनी हुई धूप की लहलहाती हुई सुगंध से रमणीय था । अच्छी और उत्तम गंध से सुगंधित था। सुगंध की अधिकता होने से वह गंध की गुटिका के समान मालूम पड़ता था । इस प्रकार के पुण्यात्माओं के रहने योग्य महल में एक शय्या थी । वह शय्या कैसी थी सो वर्णन किया जाता है - वह शय्या शरीर के बराबर तकिया से युक्त थी । उस शय्या के दोनों तरफ यानी पैरों के नीचे और शिर के नीचे तकिया लगा हुआ था । वह शय्या दोनों ओर से ऊंची थी और बीच में For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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