________________
प्रथम अध्ययन - धारिणी रानी का वर्णन
२११ ..............maa
..................................................... स्वस्तिक चक्र आदि लक्षण और तिल आदि व्यंजनों से युक्त, माणुम्माणप्पमाण-पडिपुण्ण सुजाय-सव्वंग सुंदरंगी- मान*, उन्मान और प्रमाण से युक्त शरीर होने के कारण सर्वाङ्ग सुंदरी, ससिसोमाकार कंत- पियदंसणा - उसका मुख चन्द्रमा जैसा सौम्य और मनोहर होने से देखने वालों को बड़ा ही प्यारा लगता था, करयलपरिमिय पसत्थ-तिवलिय-वलिय मज्झा - त्रिवलियुक्त कमर का मध्य भाग इतना पतला कि वह मुट्ठी में आ जाता था," कुंडलुल्लिहियगंडलेहा-कुंडलुल्लिहियपीणगंडलेहा - उसके मुख पर की गई श्रृंगार की रचना कानों के कुण्डलों से चमकदार हो गई थी, कोमुइरयणियर विमल पडिपुण्ण सोमवयणा - कौमुदी अर्थात् कार्तिक में उदय होने वाले पूर्ण चन्द्रमा के समान उसका मुख निर्मल और सौम्य था, सिंगारागारचारुवेसा. - उसका वेश मानो श्रृंगार रस का स्थान था, संगय-गय-हसियभणिय-विहिय-विलास-सललिय संलाव-णिउणजुत्तोवयार कुसला - उसका चलना हंसना, बोलना, विहित यानी चेष्टा और. विलास यानी नेत्र चेष्टा, ये सब उचित थे, प्रसन्नापूर्वक परस्पर
भाषण करने में कुशल तथा लोकव्यवहार में चतुर, अणुरत्ता - अनुरक्त, अविरत्ता - अविरक्त, । पच्चणुब्भवमाणी - भोगती हुई।
भावार्थ - उस अदीनशत्रु राजा की धारिणी रानी के हाथ पैर बड़े ही कोमल थे। उसका शरीर परिपूर्ण पांचों इन्द्रियों से युक्त था। उसका शरीर स्वस्तिक, चक्र आदि लक्षण और तिल आदि व्यंजनों से युक्त था। उसका शरीर मान, उन्मान और प्रमाण से युक्त था अतः वह सर्वाङ्ग सुंदरी थी। धारिणी का मुख चन्द्रमा जैसा सौम्य और मनोहर होने से देखने वालों को बड़ा ही प्यारा लगता था। वह सुरूपा थी। उसका त्रिवलियुक्त कमर का मध्य भाग इतना पतला था कि वह मुट्ठी में आ जाता था। उसके मुख पर की गई श्रृंगार की रचना कानों के कुण्डलों से चमकदार हो गई थी। कौमुदी अर्थात् कार्तिक में उदय होने वाले पूर्ण चन्द्रमा के समान उसका मुख निर्मल और सौम्य था। उसका वेश मानों श्रृंगार रस का स्थान था। उसका चलना, हंसना, बोलना विहित यानी चेष्टा और विलास यानी नेत्र चेष्टा, ये सब उचित थे। प्रसन्नता पूर्वक भाषण करने में कुशल तथा लोक व्यवहार में चतुर थी। उसे देखते ही चित्त
____ * मान - एक पुरुष प्रमाण जल का कुंड भर कर उसमें उसी पुरुष को बैठाने से यदि एक द्रोण प्रमाण यानी ३२ सेर पानी कुण्ड से बाहर निकल जाय वह 'मान' युक्त कहलाता है। . * उन्मान - मनुष्य को तराजू में बैठाने से उसका वजन अर्द्धभार प्रमाण हो उसे 'उन्मान' प्राप्त कहते हैं। . ० प्रमाण - अपने अंगुलों से जो १०८ अंगुल हो वह 'प्रमाण' प्राप्त कहलाता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org