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नववां अध्ययन - पुष्यनंदी का कोप
१६१ ........................................................... पासंति पासित्ता जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सिरिं देविं णिप्पाणं णिच्चेटुंजीवियविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा! अहो अकज्जमितिकट्ट रोयमाणीओ कंदमाणीओ विलवमाणीओ जेणेव पुसणंदी राया तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता पूसणंदि रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! सिरी देवी देवदत्ताए देवीए अकाले चेव जीवियाओ ववरोविया॥१५६॥ . . कठिन शब्दार्थ - आरसियसई - आरसित शब्द-आक्रन्दनमय शब्द, णिप्पाणं - निष्प्राण, णिच्चेढें - निश्चेष्ट-चेष्टा रहित, जीवविप्पजढं - जीवन रहित, अकज्जमिति - बड़ा अनर्थ हुआ इस प्रकार, रोयमाणीओ - रुदन करती हुई।
. भावार्थ - तदनन्तर उस भयानक चित्कार शब्द को सुन कर श्रीदेवी की दास दासियाँ वहां दौड़ी आई, आते ही उन्होंने वहां से देवदत्ता को जाते हुए देखा और जब वे श्रीदेवी के पास गई तो उन्होंने श्रीदेवी को प्राण रहित, चेष्टारहित और जीवन रहित पाया। इस प्रकार श्रीदेवी को मृत देखकर हा! हा! अहो! बड़ा अनर्थ हुआ। इस प्रकार कह कर रुदन, आक्रन्दन तथा विलाप करती हुई जहां पर पुष्यनंदी राजा था वहां पर आती है और आकर इस प्रकार कहने लगी-'हे स्वामिन्! श्रीदेवी को देवदत्ता देवी ने अकाल में ही जीवन से रहित कर दिया, मार दिया।'
विवेचन - विषयलोलुपी मानव को कर्त्तव्याकर्त्तव्य या उचितानुचित का कुछ भी भान नहीं रहता। उसका एक मात्र ध्येय विषय वासना की पूर्ति ही होता है। इसके लिये उसे भले ही बड़े से बड़ा अनर्थ भी क्यों नहीं करना पड़े। ___ विषय वासना की भूखी विवेकशून्या देवदत्ता ने भी मात्र अपने पति की चाह में जिसका कि विषयपूर्ति के अतिरिक्त कोई भी उद्देश्य नहीं था, उसकी तीर्थ समान पूज्या माता का जिस निर्दयता से प्राणान्त किया उसका वर्णन सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में किया है। यह सब कुछ मानवता का पतन करने वाली आत्मघातिनी कामवासना का ही दूषित परिणाम है। ____ दास दासियों द्वारा राजमाता श्रीदेवी की अकाल मृत्यु का समाचार ज्ञात होने पर महाराज पुष्यनंदी पर क्या असर पड़ा और उन्होंने क्या किया उसका वर्णन इस सूत्र में करते हैं - -
पुष्यनंदी का कोप तए णं से पूसणंदी राया तासिं दासचेडीणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म महया माइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुणियत्ते विव चंपगवरपायवे धसत्ति
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