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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ...........................................................
प्रस्तुत सूत्र के सुखविपाक नामक इस द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन में सुबाहुकुमार का वर्णन किया गया है जिन्होंने सुमुख गाथापति के भव में सुदत्त अनगार को सुपात्रदान देकर संसार परिमित किया है। इस अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
- गौतम स्वामी की जिज्ञासा तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए सुहम्मे समोसढे जंबू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अयमढे पण्णत्ते, सुहविवागाणं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णते? _तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबु अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्ायणा पण्णत्ता, तंजहा - (गा०) सुबाहु भद्दणंदी य सुजाए य सुवासवे।
तहेव जिणदासे य धणवई य महब्बले॥१॥ , .. भद्दणंदी महच्चंदे वरदत्ते तहेव य ॥१६६॥
भावार्थ - उस काल उस समय राजगृह नगर के गुणशील नामक चैत्य (उद्यान) में सुधर्मा स्वामी पधारे। जंबूस्वामी यावत् पर्युपासना करते हुए सुधर्मा स्वामी से इस प्रकार कहते हैं - 'हे भगवन्! श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त महावीर स्वामी ने दुःखविपाक का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो यावत् मोक्ष संप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है?'
इसके उत्तर में सुधर्मा स्वामी जम्बू अनगार से इस प्रकार बोले - 'हे जम्बू! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं जो इस प्रकार हैं - १. सुबाहु २. भद्रनन्दी ३. सुजात ४. सुवासव ५. जिनदास ६. धनपति ७. महाबल ८. भद्रनंदी ६. महाचन्द्र और १०. वरदत्त।'
विवेचन - आर्य सुधर्मा स्वामी के मुखारविंद से विपाकश्रुत के दुःखविपाक के दश अध्ययनों का वर्णन सुनने के बाद आर्य जंबू अनगार को सुखविपाक मूलक अध्ययनों को सुनने
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