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प्रथम अध्ययन - नगर आदि का वर्णन
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तात्पर्य यह है कि वहां जनसंख्या अधिक थी। उसकी सीमाओं पर दूर तक लाखों हलों द्वारा क्षेत्र-खेत अच्छी तरह बोये जाते थे तथा वे मनोज्ञ, किसानों के अभिलषित फल के देने में समर्थ और बीज बोने के योग्य बनाये जाते थे। उसमें कुक्कुटों, मुर्गों और सांडों के बहुत से समूह रहते थे। वह इक्षु-गन्ना, यव-जौ और शालि-धान से युक्त था। उनमें बहुतसी गौएं, भैंसे
और भेडें रहती थीं। उसमें बहुत से चैत्यालय और वेश्याओं के मुहल्ले थे। वह उत्कोच-रिश्वत लेने वालों, ग्रंथिभेदकों-गांठ कतरने वालों, भटों-बलात्कार करने वालों, तस्करों-चोरों और खण्डरक्षकों-कोतवालों अथवा कर-महसूल लेने वालों से रहित था। वह नगर क्षेमरूप था अर्थात् वहां किसी का अनिष्ट नहीं होता था। वह नगर निरुपद्रव-राजादि कृत उपद्रवों से रहित था। उसमें भिक्षुओं को भिक्षा की कोई कमी नहीं थी। वह नगर विश्वस्त-निर्भय अथवा धैर्यवान लोगों के लिये सुखरूप आवास वाला था अर्थात् उस नगर में लोग निर्भय और सुखी रहते थे। वह नगर अनेक प्रकार के कुटुम्बियों और संतुष्ट लोगों से भरा हुआ होने के कारण सुखरूप था। नाटक करने वाले, नृत्य करने वाले, रस्से पर खेल करने वाले अथवा राजा की स्तुति करने वाले चारण, मल्ल-पहलवान, मौष्टिक-मुष्टि युद्ध करने वाले, विदूषक, कथा कहने वाले और तैरने वाले, रासे गाने वाले अथवा “आपकी जय हो" इस प्रकार कहने वाले, ज्योतिषी, बांसों पर खेल करने वाले, चित्र दिखा कर भिक्षा मांगने वाले, तूण नामक वाद्य बजाने वाले, वीणा बजाने वाले, ताली बजा कर नाचने वाले आदि उस नगर में रहते थे। आराम-बाग, उद्यान-जिसमें वृक्षों की बहुलता हो और जो उत्सव आदि के समय बहुत लोगों के उपयोग में लाया जाता हो, कूप-कूआं, तालाब, बावड़ी, उपजाऊ खेत इन सबकी रमणीयता आदि गुणों से वह नगर युक्त था। नंदनवन (एक वन जो मेरु पर्वत पर स्थित है) के समान वह नगर शोभायमान था। उस विशाल नगर के चारों ओर एक गहरी खाई थी जो कि ऊपर से चौड़ी और नीचे से संकुचित थी, चक्र-गोलाकार शस्त्र विशेष, गदा-शस्त्र विशेष, भुशुण्डी-शस्त्र विशेष, अवरोध-मध्य का कोट, शतघ्नी-सैकड़ों प्राणियों का नाश करने वाला शस्त्र विशेष (तोप) तथा छिद्र रहित कपाट, इन सबके कारण वह नगर शत्रुओं के लिए दुष्प्रवेश था। वक्र धनुष से भी अधिक वक्र प्राकार-कोट से वह नगर परिवेष्टित था। वह नगर अनेक सुंदर कंगूरों से मनोहर था। ऊंची अटारियों, कोट के भीतर आठ हाथ के मार्गों, ऊंचे-ऊंचे कोट के द्वारों, गोपुरों-नगर के द्वारों, तोरणों - घर या नगर के बाहिरी फाटकों और चौड़ी-चौड़ी सड़कों से वह नगर युक्त. था। उस नगर का अर्गल-वह लकड़ी जिससे किवाड़ बंद करके पीछे से आड़ी लगा
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