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नववा अध्ययन श्रीदेवी की अकाल मृत्यु
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राजा बनने के बाद पुष्यनन्दी अपनी माता श्रीदेवी की निरन्तर भक्ति - सेवा करने लगा। वह प्रतिदिन माता के पास जाकर उनके चरण वंदन करता है तदनन्तर शतपाक और सहस्रपाक तैलों . की मालिश से अस्थि, मांस, त्वचा और रोमों को सुखकारी, ऐसी चार प्रकार की संवाहनाअंगमर्दन से सुखशांति पहुंचाता है । तदनन्तर सुगंधित गंधवर्तक- बटने से उद्वर्तन करता है। तीन प्रकार के जलों (उष्ण, शीत और सुगंधित) से स्नान कराता है तत्पश्चात् विपुल अशनादिक का भोजन कराता है। इस प्रकार श्रीदेवी के भोजनादि से निवृत्त हो जाने और सुखासन पर विराजने के बाद वह स्नान करता है, भोजन करता है और मनुष्य संबंधी उदार - प्रधान भोगों का उपभोग करते हुए समय व्यतीत करता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पिता के स्वर्गवास के बाद राजा पुष्यनंदी द्वारा अपने आचरण से मातृसेवा का जो आदर्श उपस्थित किया गया है वह प्रशंसनीय और अनुकरणीय है। श्रीदेवी की अकाल मृत्यु
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तए णं तीसे देवदत्ताए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे अज्झत्थिए ५ समुप्पण्णे - एवं खलु पूसणंदी राया सिरीए देवीए माइभत्ते जाव विहरइ तं एएणं वक्खेवेणं णो संचाएमि अहं पूसणंदिणा रण्णा सद्धिं उरालाइंमाणुस्सगाई भोगभोगाइ भुंजमाणी विहरत्तए तं सेयं खलु मम सिरिदेविं अग्गिपओगेण वा सत्थपओगेण विसपओगेण मंतप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए ववरोवित्ता पूसणंदिणा रण्णा सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणीए विहरित्तए, एवं संपेहेइ संपेहित्ता सिरीए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरइ ।
तए णं सा सिरी देवी अण्णया कयाइ मज्जाइया विरहियसयणिज्जंसि सुहपसुत्ता जाया यावि होत्था । इमं च णं देवदत्ता देवी जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीदेवीं मज्जाइयं विरहियसयणिज्जंसि सुहपसुतं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोहदंडं परामुसइ परामुसित्ता लोहदंडं तावेइ, तावेत्ता तत्तं समजोइभूयं फुल्लकिंसुयसमाणं संडासएणं गहाय जेणेव सिरी देवी तेणेव
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