________________
.. नववां अध्ययन - देवदत्ता का विवाह
१८७
रोहीतक नगर के मध्य में से होता हुआ वह दत्त सेठ जहां पर वैश्रमण राजा का महल था जहां वैश्रमण राजा विराजमान था. वहां पर आता है और आकर दोनों हाथ जोड़ कर यावत् बधाई देता है और देवदत्ता दारिका को वैश्रमण राजा को अर्पण कर देता है।
देवदत्ता का विवाह तए णं से वेसमणे राया देवदत्तं दारियं उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ० विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-णाइ० आमंतेइ जाव सक्कारेइ० पूसणंदिकुमारं देवदत्तं च दारियं पट्टयं दुरुहेइ, दुरुहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं मजावेइ, मज्जावेत्ता वरणेवत्थाई करेइ, करेत्ता अग्गिहोमं करेइ, करेत्ता पूसणंदिकुमारं देवदत्ताए दारियाए पाणिं गिण्हावेइ। तए णं से वेसमणे राया पूसाणंदिकुमारस्स देवदत्तं दारियं सविडीए जाव रवेणं महया इडीसक्कारसमुदएणं पाणिग्महणं करेइ, करेत्ता देवदत्ताए दारियाए अम्मापियरो मित्त जाव परियणं च विउलेणं असणं० वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ संमाणेड जाव पडिविसज्जेइ॥१५६॥
__ भावार्थ - तदनन्तर वैश्रमण राजा अर्पण की गई देवदत्ता कन्या को देख कर बड़े प्रसन्न हुए और विपुल अशनादिक को तैयार करा कर मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकों, संबंधियों और परिजनों को आमंत्रित कर उन्हें भोजनादि करा कर उन का वस्त्र, गंध, माला और अलंकार
आदि से सत्कार-सम्मान करते हैं। तदनन्तर पुष्यनंदी कुमार और देवदत्ता कन्या को फलक पर बिठा कर श्वेत और पीले (चांदी और सोने के) कलशों से उनका अभिषेक कराते हैं तत्पश्चात् उन्हें सुंदर वेशभूषा से सुसज्जित कर अग्निहोम-हवन कराते हैं, हवन करा कर पुष्यनंदी कुमार
और देवदत्ता का पाणिग्रहण (विवाह) कराते हैं। तदनंतर वह वैश्रमण राजा पुष्यनंदी कुमार को तथा देवदत्ता को सर्व ऋद्धि यावत् वांदित्रादि के शब्द से महान् ऋद्धि-वस्त्रालंकार सम्पत्ति और सत्कार सम्मान के साथ दोनों का विवाह संस्कार कराते हैं। विवाह संस्कार हो जाने के बाद देवदत्ता के माता पिता और उनके अन्य मित्र यावत् परिजनों का भी विपुल अशनादिक तथा वस्त्र, गंध, माला और अलंकार आदि से सत्कार करते हैं सम्मान करते हैं, सत्कार सम्मान करने के बाद उन सब को विदा करते हैं। .. .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org