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दसवां अध्ययन - भविष्य-पृच्छा
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सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। सेवं भंते! सेवं भंते!॥१६८॥
॥ दसमं अज्झयणं समत्तं॥
॥ पढमो सुयक्खंधो समत्तो॥ भावार्थ - वहां वह मोर शाकुनिकों-पक्षी घातक शिकारियों के द्वारा वध किये जाने पर उसी सर्वतोभद्र नगर के एक श्रेष्ठकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। वहां बालभाव को त्याग कर यौवनावस्था को प्राप्त हुए तथा विज्ञान की परिपक्व अवस्था को प्राप्त किये हुए तथारूप स्थविरों के समीप बोधिलाभ-सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा। तदनन्तर दीक्षा ग्रहण करके सौधर्म : देवलोक में उत्पन्न होगा। - हे भगवन्! देवलोक की आयु पूर्ण कर कहां जायेगा? कहां उत्पन्न होगा? . हे गौतम! महाविदेह क्षेत्र में जाएगा और वहां उत्तम कुल में उत्पन्न होगा जैसे कि प्रथम अध्ययन में वर्णन किया गया है तदनुसार सिद्ध पद को प्राप्त करेगा यावत् सर्व दुःखों का अंत करेगा।
इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू! श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के दसवें अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। हे भगवन्! यह इसी प्रकार है। हे भगवन्! यह इसी प्रकार है।
॥ दशवां अध्ययन सम्पूर्ण॥ ॥ दुःखविपाक नामक प्रथम श्रुतस्कंध समाप्त॥ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अंजूदेवी के भविष्य के भवों का कथन किया गया है। “एवं संसारो जहा पढमो, जहा णेयव्वं" पाठ से आगमकार ने मृगापुत्र नामक प्रथम अध्ययन को सूचित किया है अर्थात् जिस प्रकार विपाक सूत्र के प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र के संसार परिभ्रमण का प्रतिपादन किया गया है उसी प्रकार अंजूश्री के विषय में भी समझ लेना चाहिये। अंजूश्री का जीव वनस्पतिकाय में कटु वृक्षों तथा कटु दूध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार जन्म मरण करने के बाद सर्वतोभद्र में मोर के रूप में उत्पन्न होगा। यहां पर भी अशुभ कर्मों के उदय के कारण शाकुनिकों के हाथों मृत्यु को प्राप्त कर उसी नगर में एक धनी परिवार में उत्पन्न
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