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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध .......................................................... ___ इस प्रकार वर्णन करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी गौतमस्वामी को फरमाते हैं कि हे गौतम! तुमने विजयमित्र राजा की अशोकवाटिका के समीप आन्तरिक वेदना से दुःखी होकर विलाप करती हुई जिस स्त्री को देखा था यह वही अंजूश्री है जो अपने पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मों के कारण दुःखमय विपाक का अनुभव कर रही है। ____ अंजूश्री के जीवन वृत्तांत को सुन कर और उसके शरीरगत रोग को असाध्य जान कर मृत्यु के पश्चात् वह कहां जाएगी? इस जिज्ञासा से पुनः गौतमस्वामी प्रभु से पृच्छा करते हैं -
भविष्य-पृच्छा अंजू णं भंते! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! अंजू णं देवी णउई वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववज्जिहिइ, एवं संसारो जहा : पढमे तहा णेयव्वं जाव वणस्सइ०, मा णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सव्वओभद्दे णयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिइ॥१६७॥
भावार्थ - हे भगवन्! अंजूदेवी यहां से कालमास में काल करके कहां जावेगी? कहां उत्पन्न होगी?
हे गौतम! अंजूदेवी नब्बे (६०) वर्ष की परम आयु को भोग कर कालमास में काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होगी। उसका शेष संसार परिभ्रमण प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र के समान समझ लेना चाहिये यावत् वनस्पतिगत नीम आदि कटुवृक्षों तथा कटु दूध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। तदनन्तर वहां से व्यवधान रहित निकल कर सर्वतोभद्र नगर में मोर के रूप में उत्पन्न होगी।
से णं तत्थ साउणिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सव्वओभद्दे णयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं० केवलं बोहिं बुझिहिइ पव्वज्जा सोहम्मे०। से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं० कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे जहा पढमे जाव
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