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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ........................................................... भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के दशवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है। जंबूस्वामी की इस जिज्ञासा का समाधान करने के लिये आर्य सुधर्मा स्वामी ने उपरोक्तानुसार दशवें अध्ययन का प्रारंभ किया है।
पूर्वभव-पृच्छा तेणं कालेणं तेणं समएणं जेट्टे जाव अडमाणे जाव विजयमित्तस्स रण्णो गिहस्स असोगवणियाए अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे पासइ एगं इत्थियं सुक्कं भुक्खं णिम्मंसं किडिकिडियाभूयं अट्ठिचम्मावणद्धं णीलसाडगणियत्थं कट्ठाई कलुणाई वीसराई कूवमाणिं पासइ० चिंता तहेव जाव एवं वयासी-सा णं भंते! इत्थिया पुव्वभवे का आसी? वागरणं॥१६॥ __ कठिन शब्दार्थ - सुक्कं - सूखी हुई, भुक्खं - बुभुक्षित, णिम्मंसं - मांस रहित; किडिकिडियाभूयं - किटिकिटि शब्द से युक्त अर्थात् जिसके शरीर की हड्डियां किटिकिटि शब्द कर रही है, अट्ठिचम्मावणद्धं - अस्थिचौवनद्ध-जिसका चर्म अस्थियों से चिपटा हुआ है, णीलसाडगणियत्थं - जो नीली साड़ी पहने हुए हैं ऐसी, कट्ठाई - कष्टात्मक-कष्टप्रद, कलुणाई- करुणोत्पादक, वीसराई - दीनतापूर्वक वचन, कूवमाणिं - बोलती हुई, वागरणं - प्रतिपादन करना।
. भावार्थ - उस काल उस समय में भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य गौतमस्वामी यावत् भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए विजयमित्र राजा के घर की अशोकवनिका के समीप जाते हुए एक सूखी हुई बुभुक्षित, निर्मास, किटिकिटि शब्द करती हुई अस्थिचर्मावनद्ध नीली साड़ी पहने हुए, कष्टमय, करुणाजनक तथा दीनतापूर्ण वचन बोलती हुई एक स्त्री को देखते हैं, देख कर विचार करते हैं। शेष पूर्वानुसार यावत् भगवान् से आकर इस प्रकार बोले - 'हे भगवन्! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी?' इसके उत्तर में भगवान् महावीर स्वामी प्रतिपादन करते हैं।
भगवान् का समाधान एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे णामं णयरे होत्था। तत्थ णं इंददत्ते राया पुढवीसिरी णामं गणिया होत्था
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