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. नववां अध्ययन - भविष्य-पृच्छा
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अंतिम तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी को फरमाया - 'हे गौतम! आज तुमने जिस भीषण दृश्य को देखा है और जिस स्त्री की मेरे पास चर्चा की है यह वही देवदत्ता है। देवदत्ता के लिये पुष्यनंदी राजा ने इस प्रकार दण्ड देने तथा वध करने की आज्ञा प्रदान की है। अतः हे गौतम! यह पूर्वकृत कर्मों का ही कटु फल है।' अब सूत्रकार देवदत्ता के भावी जीवन का कथन करते हैं -
भविष्य-पृच्छा देवदत्ता णं भंते! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छि(मि)हिइ कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! असीइं वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णा संसारो वणस्सइ..... तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता गंगपुरे णयरे हंसत्ताए पच्चायाहिइ, से णं तत्थ साउणिएहिं वहिए समाणे तत्थेव गंगपुरे णयरे सेट्ठिकु० बोहिं.......सोहम्मे.........महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ०॥णिक्खेवो॥१६१॥ .
॥णवमं अज्झयणं समत्तं॥ . कठिन शब्दार्थ - हंसत्ताए - हंस रूप से, साउणिएहिं - शाकुनिकों-शिकारियों के
द्वारा।
- भावार्थ - हे भगवन्! देवदत्ता देवी यहां से कालमास में काल करके कहां जाएगी? कहां पर उत्पन्न होगी? ____ हे गौतम! देवदत्ता देवी अस्सी (८०) वर्षों की परम आयु पाल कर कालमास में काल करके रत्नप्रभा नामक नरक में उत्पन्न होगी। पूर्ववत् शेष संसार परिभ्रमण करती हुई यावत् वनस्पतिगत नीम आदि कटु वृक्षों में तथा कटु दुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। वहां से अंतर रहित निकल कर गंगापुर नगर में हंस रूप से उत्पन्न होगी। वह हंस शाकुनिकों द्वारा वध किये जाने पर उसी गंगापुर नगर में श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप से जन्म लेगा, वहां सम्यक्त्व को प्राप्त कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा वहां से महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न
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