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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ...........................................................
तए णं से सीहसेणे राया अद्धरत्तकालसमयंसि बहूहिं पुरिसेहिं सद्धिं संपरिवुडे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता कूडागारसालाए दुवाराई पिहेइ पिहेत्ता कूडागारसालाए सव्वओ समंता अगणिकायं दलयइ। तए णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणगाई पंचमाइसयाई सीहरण्णा आलीवियाई समाणाइं रोयमाणाई कंदमाणाई विलवमाणाई अत्ताणाई असरणाई कालधम्मुणा संजुत्ताई॥१५१॥ ___ कठिन शब्दार्थ - साहरह - ले जाओ, णाडएहि - नाटकों द्वारा, बगीयमाणाई:उपगीयमान-गान की गई, अद्धरत्तकालसमयंसि - अर्द्ध रात्रि के समय, दुवाड़ाई-द्वारों को, पिहेइ - बंद कराता है, आलीवियाई समाणाई - आदीप्त की गई-जलाई गई, अत्ताणाईअत्राण-जिसकी कोई रक्षा करने वाला नहीं हो, असरणाई - अशरण-जिसे कोई शरण देने वाला न हो।
भावार्थ - तदनन्तर वह सिंहसेन किसी अन्य समय पर एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पांच सौ माताओं को आमंत्रित करता है। सिंहसेन राजा द्वारा आमंत्रित की हुई वे एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पांच सौ माताएं यथाविभव-अपने अपने वैभव के अनुसार सर्वप्रकार के वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो, सुप्रतिष्ठ नगर में सिंहसेन राजा के पास आती है। तदनंतर वह सिंहसेन राजा उन एक कम पांच सौ माताओं को कूटाकार शाला में रहने के लिए स्थान देता है। तत्पश्चात् अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर इस प्रकार कहता है कि हे देवानुप्रियो! तुम जाओ और कूटाकारशाला में विपुल मात्रा में अशनादिक तथा अनेकविध पुष्पों, वस्त्रों, सुगंधित पदार्थों मालाओं और अलंकारों को पहुँचाओ। कौटुम्बिक पुरुष सिंहसेन महाराजा की आज्ञानुसार सारी सामग्री कूटाकारशाला में पहुँचा देते हैं। __तदनन्तर उन एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पांच सौ माताओं ने सर्व प्रकार के अलंकारों से अलंकृत हो विपुल अशनादिक तथा सुरा आदि सामग्री का आस्वादन आदि किया और नाटक - नर्तक गंधर्व आदि से उपगीयमान हो आनंदपूर्वक समय व्यतीत करती हैं। ___ तत्पश्चात् अर्द्ध रात्रि के समय सिंहसेन राजा अनेक पुरुषों से घिरा हुआ जहाँ कूटाकार शाला थी वहाँ पर आया, आकर उसने कुटाकारशाला के सभी दरवाजे बंद करवा दिये और कूटाकारशाला के चारों ओर अग्नि लगवा दी। तदनन्तर वे एक कम पांच सौ देवियों की एक
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