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नववां अध्ययन - देवदत्ता के रूप में जन्म
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कम पांच सौ माताएं सिंहसेन राजा के द्वारा जलाई गईं रुदन, आक्रन्दन और विलाप करती हुई त्राण और शरण से रहित हुई कालधर्म को प्राप्त हो गईं। _ विवेचन - विषयांध और विषयलोलुप जीव कितना अनर्थ करने पर उतारु हो जाता है - यह सिंहसेन के कथानक से स्पष्ट है। महाराजा सिंहसेन ने महारानी श्यामा के वशीभूत हो कितना बीभत्स आचरण किया, उसका स्मरण करते ही हृदय कांप उठता है। एक कम पांच सौ (४६६) महिलाओं को जीते जी अग्नि में जला देना और इस पर भी मन में पश्चात्ताप नहीं होना, प्रत्युत हर्ष से फूले नहीं समाना, दानवता की पराकाष्ठा है। इस प्रकार सिंहसेन ने घोर पाप कर्मों का उपार्जन किया, जिसका फल उसे भुगतना ही पड़ेगा क्योंकि कर्म के न्यायालय में किसी प्रकार का अंधेर नहीं है।
देवदत्ता के रूप में जन्म तए णं से सीहसेणे राया एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता चोत्तीसं वाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्टिइएसु णेरइयत्ताएं उववण्णे, से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव रोहीडए णयरे दत्तस्स सत्थवाहस्स कण्हसिरीए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए उववण्णे।
तए णं सा कण्हसिरी णवण्हं मासाणं जाव दारियं पयाया सुकुमाल० सुरूवं। तए णं तीसे दांरियाए अम्मापियरो णिव्वत्तबारसाहियाए विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति उवक्खडावेत्ता जाव मित्त णाइ० णामधेज्जं करेंति....तं होउ णं दारिया देवदत्ता णामेणं। तए णं सा देवदत्ता दारिया पंचधाईपरिग्गहिया जाव परिवड्डइ। तए णं सा देवदत्ता दारिया उम्मुक्कबालभावा जोव्वणेण य रूवेण य लावण्णेण य जाव अईव० उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था॥१५२॥ . .. भावार्थ - तदनन्तर वह सिंहसेन राजा एतत्कर्मा (यही जिसका कर्म हो) एतत्प्रधान (यही जिसके जीवन की साधना हो) एतद्विध (यही जिसकी विद्या विज्ञान हो) एतत्समुदाचार (यही
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