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नववां अध्ययन - आर्त्तध्यान का कारण
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आर्त्तध्यान का कारण तए णं से सीहसेणे राया इमीसे कहाए लट्टे समाणे जेणेव कोवघरए जेणेव सामा देवी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सामं देविं ओहय० जाव पासइ, पासित्ता एवं वयासी-किं णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहय० जाव झियासि? तए णं सा सामा देवी सीहसेणेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी उप्फेणउप्फेणियं सीहसेणं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! मम एगूणगाणं पंचसवत्तीसयाणं एगूणपंचमाइसयाणं इमीसे कहाए लट्ठाणं समाणा० अण्णमण्णे सद्दावेंति सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु सीहसेणे राया सामाए देवीए उवरि मुच्छिए ४ अम्हं धूयाओ णो आढाइ....जाव अंतराणि य छिद्दाणि० पडिजागरमाणीओ. विहरंति तं ण णज्जइ० भीया जाव झियामि॥१४॥ . कठिन शब्दार्थ - उप्फेण उप्फेणियं - दूध के उफान के समान क्रुद्ध हुई अर्थात् क्रोध युक्त प्रबल वचनों से।
भावार्थ - तदनन्तर वह सिंहसेन राजा इस वृत्तांत से अवगत हो जहां कोपगृह में श्यामादेवी थी वहां आता है आकर श्यामादेवी को निराश मन से आर्तध्यान करती हुई देख कर इस प्रकार बोला - 'हे देवानुप्रिये! तुम इस प्रकार क्यों निराश और चिंतित हो रही हो?' महाराजा सिंहसेन के इस कथन को सुन कर श्यामादेवी क्रोध युक्त प्रबल वचनों से इस प्रकार बोली - 'हे स्वामिन्! मेरी एक कम पांच सौ सपत्नियों की एक कम पांच सौ माताएं इस वृत्तांत को जान कर एक दूसरे को बुलाती है बुलाकर इस प्रकार कहती है कि सिंहसेन राजा श्यामादेवी में मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न हुआ हमारी पुत्रियों का आदर नहीं करता, ध्यान नहीं रखता प्रत्युत उनका अनादर करते हुए, ध्यान नहीं रखते हुए समय बिता रहा है। इसलिये अब हमारे लिये यही उचित है कि हम श्यामादेवी को अग्नि, विष या शस्त्र प्रयोग से जीवन से रहित कर दें। इस प्रकार विचार कर वे मेरे अंतर, छिद्र और विरह की प्रतीक्षा करती हुई विहरण कर रही है। इसलिये न मालूम वे मुझे किस कुमौत से मारें इस कारण भयभीत हुई मैं यहां आकर आर्तध्यान कर रही हूं।
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