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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
हैं"-इस निराशाजनक उत्तर को सुन कर शौरिकदत्त को बड़ा भारी कष्ट हुआ और उसी कष्ट से सूख कर वह अस्थिपंजर-सा हो गया तथा प्रतिक्षण-प्रतिपल वेदना को भुगतता हुआ वह समय व्यतीत करने लगा।
भगवान् महावीर स्वामी ने अपने शिष्य गौतमस्वामी को कहा कि हे गौतम! यह वही शौरिकदत्त मच्छीमार है जिसको तुमने शौरिकपुर नगर में मनुष्यों के जमघट में देखा है। यह सब कुछ उसके कर्मों का ही प्रत्यक्ष फल है। अब सूत्रकार शौरिकदत्त के आगामी भवों का वर्णन करते हुए कहते हैं -
भविष्य-पृच्छा सोरिए णं भंते! मच्छंधे इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिए? कहिं उववज्जिहिइ? ___ गोयमा! सत्तरि-वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए०, संसारो तहेव० पुढवी० हत्थिणाउरे णयरे मच्छत्ताए उववजिहिइ, से णं तओ मच्छिएहिं जीवियाओ ववरोविए तत्थेव सेट्टिकुलंसि उववजिहिइ बोही सोहम्मे कप्पे..........महाविदेहे वासे सिझिाहिइ० ॥णिक्खेवो॥१४४॥
. ॥ अट्ठमं अज्झयणं समत्तं॥ भावार्थ - हे भगवन्! शौरिकदत्त मत्स्यमार यहां से कालमास में अर्थात् मृत्यु का समय आ जाने पर काल करके कहां जायेगा? कहां उत्पन्न होगा?
हे गौतम! सत्तर वर्षों की परमायु का पालन करके कालमास में कालं करके इस रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में उत्पन्न होगा। संसार भ्रमण पूर्ववत् (प्रथम अध्ययन की तरह) समझ लेना चाहिये यावत् पृथ्वीकाय में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहां से हस्तिनापुर नगर में मत्स्य रूप में उत्पन्न होगा। वहां पर मच्छीमारों के द्वारा वध को प्राप्त हो वहीं हस्तिनापुर में एक श्रेष्ठिकुल में जन्म लेगा, सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा तथा काल कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्मेगा, वहां चारित्र ग्रहण कर सिद्ध पद को प्राप्त करेगा यावत् सभी दुःखों का अंत करेगा। निक्षेप-उपसंहार पूर्व की भांति समझ लेना चाहिये।
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