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देवदत्ता णामं णवमं अज्झयणं देवदत्ता नामक नववां अध्ययन
आठवें अध्ययन में शौरिकदत्त का जीवन वर्णन करने के बाद अब आगमकार इस नौवें अध्ययन में एक ऐसी स्त्री का जीवन वृत्तांत दे रहे हैं जो ब्रह्मचर्य से विमुख बन कर विषयासक्त जीवन जीती है और विषयान्ध बन कर अपनी सास के जीवन का भी अंत कर देती है। साथ ही एक ऐसे पुरुष का भी जीवन वृत्तांत दिया है जो एक स्त्री में आसक्त बन कर ४६६ स्त्रियों को आग में जला देता है। मैथुन सेवन के पाप का दुष्परिणाम बताने वाले इस नौवें अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
उत्क्षेप प्रस्तावना
जड़ णं भंते! ..... उक्खेवो णवमस्स० एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए णामं णयरे होत्था रिद्ध० । पुढविवडिंसए उज्जाणे, धरणो जक्खो, वेसमणदत्ते राया, सिरी देवी, पूसणंदी कुमारे जुवराया । तत्थ णं रोहीडए यरे दत्ते णामं गाहावई परिवसइ अड्डे० कण्हसिरी भारिया । तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता णामं दारिया होत्था अहीण० जाव उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा ॥ १४५ ॥
भावार्थ - नवम अध्ययन के उत्क्षेप प्रस्तावना की कल्पना पूर्वानुसार समझ लेनी चाहिये । हे जम्बू ! उस काल और उस समय में रोहीतक नाम का एक नगर था जो ऋद्ध भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित- स्वचक्र और परचक्र के उपद्रवों से रहित एवं समृद्ध धन धान्यादि से परिपूर्ण था । पृथ्वीवतंसक नामक उद्यान था उसमें धरण नामक यक्ष का आयतन - स्थान था । वैश्रमण दत्त नामक वहां का राजा था। उसकी श्रीदेवी नाम की रानी थी। उनके पुष्यनन्दी कुमार नामक युवराज था। उस नगर में एक दत्त नामक गाथापति रहता था जो धनी यावत् प्रतिष्ठा प्राप्त था। उसकी कृष्णश्री नाम की भार्या थी जो अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों से युक्त शरीर वाली थी यावत् उत्कृष्ट-उत्तम शरीर वाली थी।
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