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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध .......................................................... जाव पहेसु महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्योसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गले लग्गे तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा ६ सोरियमच्छियस्स मच्छकंटयं गलाओ णीहरित्तए तस्स णं सोरियदत्ते विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव उग्घोसेंति॥१४२॥
भावार्थ - तदनन्तर किसी अन्य समय शूला द्वारा पकाए गए, तले गए और भूने गए मत्स्य मांसों का आहार करते हुए उस शौरिक मत्स्यबंध के गले में मच्छी का कांटा लग गया, . जिसके कारण वह महती वेदना का अनुभव करने लगा। तब नितान्त दुःखी हुए शौरिकदत्त ने अपने अनुचरों (कौटुम्बिक पुरुषों) को बुला कर इस प्रकार कहा कि - हे देवानुप्रियो! शौरिकपुर नगर के त्रिकोण यावत् सामान्य मार्गों पर जाकर ऊंचे शब्द से इस प्रकार उद्घोषणा करो कि - : हे देवानुप्रियो! शौरिकदत्त के गले में मत्स्य का कांटा लग गया है। यदि कोई वैद्य या वैद्यपुत्र आदि उस मत्स्य कंटक को निकाल देगा तो शौरिकदत्त उसे विपुल आर्थिक सम्पत्ति-धन देगा। तब कौटुम्बिक पुरुषों ने उसकी आज्ञानुसार सारे नगर में उद्घोषणा कर दी।
कृत कर्मों का फल तए णं ते बहवे वेज्जा य ६ इमेयारूवं उग्योसणं उग्घोसिज्जमाणं णिसामेंति णिसामेत्ता जेणेव सोरियदत्तस्स गेहे जेणेव सोरियम्च्छंधे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहिं उप्पत्तियाहि० परिणममाणा वमणेहि य छड्डणेहि य ओवीलणेहि य कवलग्गाहेहि य सल्लुद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियमच्छं० मच्छकंटयं गलाओ णीहरित्तए णो चेव णं संचाएंति णीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, तए णं ते बहवे वेज्जा य ६ जाहे णो संचाएंति सोरिय० मच्छकंटगं गलाओ णीहरित्तए ताहे संता जाव जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया। तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे वेज्ज० पडियारणिव्विण्णे तेणं दुक्खेणं महया अभिभूए सुक्के जाव विहरइ। एवं खलु गोयमा! सोरियदत्ते पुरापोराणाणं जाव विहरइ॥१४३॥
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