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सातवां अध्ययन - उम्बरदत्त नामकरण
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यक्षायतन में आती है। यावत् धूप जलाती है। तदनन्तर जहां पुष्करिणी है वहां जाती है। वहां पर साथ में आने वाली मित्र ज्ञाति आदि की महिलाएं तथा अन्य महिलाएं गंगादत्ता सार्थवाही को विभिन्न अलंकारों से विभूषित करती है तत्पश्चात् उन सभी महिलाओं के साथ उस विपुल अशनादिक तथा सुरा आदि का आस्वादन आदि करती हुई गंगादत्ता अपने दोहद की पूर्ति करती है। इस प्रकार दोहद को पूर्ण कर जिस दिशा से आई थी उसी दिशा में चली गई। तदनन्तर संपूर्ण दोहद यावत् संपन्न दोहद वाली वह गंगादत्ता उस गर्भ को सुखपूर्वक धारण करती हुई समय व्यतीत करने लगी।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गंगादत्ता के गर्भ में धन्वंतरि वैद्य के जीव का आना, दोहद की उत्पत्ति और उसकी पूर्ति आदि का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार गर्भस्थ जीव के जन्म का वर्णन करते हैं -
उम्बरदत्त नामकरण तए णं सा गंगदत्ता भारिया णवण्हं मासाणं जाव पयाया ठिइवडिया जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए उंबरदत्तस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धए तं होउ णं दारए उंबरदत्ते णामेणं। तए णं से उंबरदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए....परिवड्डइ॥१३१॥
.. कठिन शब्दार्थ-ठिइवडिया- स्थिति पतिता-पुत्र जन्म संबंधी उत्सव विशेष, ओवाइयलद्धए- मन्नत मानने से उपलब्ध हुआ।
भावार्थ - तदनन्तर लगभग नवमास परिपूर्ण होने पर गंगादत्ता ने एक बालक को जन्म दिया। माता पिता ने स्थितिपतिता नामक उत्सव विशेष मनाया और बालक उम्बरदत्त यक्ष की मन्नत मानने से प्राप्त हुआ है इसलिए उन्होंने उसका उम्बरदत्त नाम रखा अर्थात् माता पिता ने उसका उम्बरदत्त नाम स्थापित किया। तत्पश्चात् वह उम्बरदत्त बालक पांच धायमाताओं से सुरक्षित होकर वृद्धि को प्राप्त करने लगा। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बालक उम्बरदत्त के जन्म एवं नामकरण का उल्लेख किया गया है।
शंका - सागरदत्त सार्थवाह और गंगादत्ता ने अपने बालक का नाम उम्बरदत्त इसलिये रखा कि वह उम्बरदत्त यक्ष के अनुग्रह से अर्थात् उसकी मनौती करने से प्राप्त हुआ था। यहां यह शंका होती है कर्मसिद्धांत से जो नारी किसी भी जीवित संतान को जन्म नहीं दे सकती थी
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