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सातवां अध्ययन - भविष्य-पृच्छा
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होगा, सब दुःखों का अंत करेगा। निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए। सप्तम अध्ययन समाप्त हुआ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में उम्बरदत्त के भविष्य का कथन किया है। उम्बरदत्त अपने कृत कर्मों को क्षय कर अंत में मोक्ष पद को प्राप्त करेगा।
जंबू स्वामी की जिज्ञासा पर भगवान् सुधर्मा स्वामी ने सातवें अध्ययन का उपरोक्त वर्णन सुनाते हुए उपसंहार में कहा कि - 'हे जम्बू! इस प्रकार यावत् मोक्ष संप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें अध्ययन का यह अर्थ फरमाया है। जैसा मैंने भगवान् से सुना है वैसा
ही तुम्हें सुना दिया है। इसमें मेरी कोई कल्पना नहीं है।' इन्हीं भावों को सूत्रकार ने 'णिक्खेवो' . पद से व्यक्त किया है। ... इस अध्ययन की प्रमुख शिक्षा यही है कि जीव अपने कृत कर्मों के अनुसार सुख दुःख पाता है अतः कर्म बांधने के पूर्व विचार करें। प्रत्येक प्राणी को कार्य करते समय अपने भावी हित और अहित का अवश्य विचार कर लेना चाहिये। ____यदि धन्वंतरि वैद्य रोगियों को मांसाहार का उपदेश देने से पूर्व तथा स्वयं मांसाहार एवं मदिरापान करने से पहले विचार कर इस दुष्कर्म से बच जाता तो उसे दुर्गतियों में नाना प्रकार के . दुःखों को नहीं भोगना पड़ता। अंत में धर्म की शरण ही उसे इन दुःखों से मुक्त बनने में सहयोगी बनी और वह मोक्ष पद का अधिकारी बना।
॥ सप्तम अध्ययन समाप्त।
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