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आठवां अध्ययन - श्रीयक की हिंसक वृत्ति
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. विवेचन - शौरिकपुर नगर में गोचरी के लिए गये गौतम स्वामी ने बहुत से मनुष्यों के बीच एक ऐसे मनुष्य को देखा जो बिल्कुल सूखा हुआ, बुभुक्षित तथा भूखा होने के कारण उसके शरीर पर मांस नहीं रहा था केवल. अस्थिपंजर-सा दिखाई देता था। हिलने चलने से उसके हाड़ किटिकिटिका शब्द करते, उसके शरीर पर नीले रंग की एक घोती थी, गले में मच्छी का कांटा लग जाने से वह अत्यंत कठिनाई से बोलता, उसका स्वर बड़ा ही करुणाजनक तथा दीनता पूर्ण था। वह मुख से पूय, रुधिर और कृमियों के कवलों-कुल्लों का वमन कर रहा था। उसे देख कर भगवान् गौतम स्वामी सोचने लगे - 'अहो! कितनी भयावह अवस्था है इस व्यक्ति की। न मालूम इसने पूर्वभव में ऐसे कौन से दुष्कर्म किये हैं जिनके विपाक स्वरूप यह इस प्रकार की नारकीय यातना को भोग रहा है।' इत्यादि विचारों में डबे वे भगवान् के चरणों में पहुँचे। आहार को दिखा तथा आलोचना आदि से निवृत्त होकर देखे गये उस पुरुष की दयनीय अवस्था का श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष कथन किया और पूछा कि - ‘भगवन्! वह दुःखी जीव कौन है? उसने पूर्वभव में ऐसे कौनसे अशुभ कर्म किये हैं जिनका कि वह यहाँ पर इस प्रकार का फल भोग रहा है?' गौतम स्वामी की उक्त जिज्ञासा का समाधान करने के लिए प्रभु ! ने उसके पूर्वभव का कथन किया।
नीयक की हिंसक वृत्ति - तस्स णं सिरीयस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य साउणिया य दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लिं बहवे सहमच्छा जाव पडागाइपडागे य अए य जाव महिसे य तित्तिरे य जाव मऊरे य जीवियाओ ववरोवेंति ववरोवेत्ता सिरियस्स महाणसियस्स उवणेति, अण्णे य से बहवे तित्तिरा य जाव मऊरा य पंजरंसि संणिरुद्धा चिटुंति, अण्णे य बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा ते बहवे तित्तिरे य जाव मऊरे य जीवियाओ चेव णिपंखेंति णिपंखेंत्ता सिरियस्स महाणसियस्स उवणेति॥१३६॥
कठिन शब्दार्थ - मच्छिया - मात्सिक-मच्छीमार, वागुरिया - वागुरिक-जाल में फंसाने का काम करने वाले व्याध, साउणिया - शाकुनिक-पक्षीघातक, दिण्णभइभत्तवेयणा - जिन्हें
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