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सोरियदत्ते णामं अहमं अज्झयणं
शौरिकदत्त नामक आठवां अध्ययन सातवें अध्ययन में उम्बरदत्त का वर्णन करने के बाद आगमकार प्रस्तुत आठवें अध्ययन में शौरिकदत्त नामक एक ऐसे व्यक्ति के जीवन का वर्णन करते हैं जो अपनी अज्ञानावस्था के कारण एक रसोइए के भव में अनेक मूक प्राणियों की हिंसा करके और मांसाहार एवं मदिरापान जैसी निंदक प्रवृत्तियों को अपना कर पापकर्म का बंध करता है तथा उसके फलस्वरूप दुर्गतियों के अनेक दुःखों को भोगता है। इस अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
उत्क्षेप-प्रस्तावना __ जइ णं भंते!....अट्ठमस्स उक्लेवो एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं णयरं सोरियवडिंसगं उज्जाणं सोरियो जक्खो सोरियदत्ते राया। तस्स णं सोरियपुरस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए होत्था। तत्थ णं समुदत्ते णामं मच्छंधे परिवसइ-अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्स णं समुहदत्तस्स समुहदत्ता णामं भारिया होत्था अहीण-पडिपुण्णपंचिंदियसरीरा। तस्स णं समुहदत्तस्स मछपस्स पुत समुहदत्ताए भारिया अत्तए सोरियदत्ते णामं दारए होत्था अहीण०॥१३४॥
कठिन शब्दार्थ - मच्छंधपाडए - मत्स्य बंधपाटक-मच्छीमारों का मोहल्ला, मच्छंधे - मस्त्य बंध-मच्छीमार।
भावार्थ - आठवें अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् समझ लेनी चाहिये। हे जम्बू! उस काल और उस समय में शौरिकपुर नाम का एक नगर था वहाँ शौरिकावतंसक नाम का उद्यान था, उसमें शारिक नामक यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ शोरिकदत्त नामक राजा राज्य करता था। शारिकपुर नगर के बाहर ईशान कोण में एक मत्स्यबंधो-मच्छीमारों का पाटक-मोहल्ला था। वहाँ समुद्रदत्त नामक एक मच्छीमार रहता था जो कि अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानंद-बड़ी कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था। उस समुद्रदत्त के समुद्रदत्ता नामक भार्या थी जो कि अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों
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