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सातवां अध्ययन - गंगादत्ता का दोहद
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कर महार्ह-बड़ों के योग्य पुष्पारोहण, वस्त्रारोहण, गंधारोहण, माल्यारोहण और चूर्णारोहण करती है। तत्पश्चात् धूपन लाती है और जलाकर घुटनों के बल उस यक्ष के चरणों में गिर करे इस प्रकार निवेदन करती है - 'हे देवानुप्रिय! यदि मैं एक भी जीवित रहने वाले पुत्र या पुत्री को जन्म दूं तो यावत् याचना करती है अर्थात् मन्नत मनाती है, मन्नत मना कर जिस दिशा से आई थी उसी दिशा की ओर चली गई।
गंगादत्ता का दोहद तए णं से धण्णंतरी वेज्जे ताओ णरयाओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलिसंडे णयरे गंगदत्ताए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे। तए णं तीसे गंगदत्ताए भारियाए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले . पाउन्भूए - धण्णाओं णं ताओ जाव फले जाओ णं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता बहूहि मित्त जाव परिवुडाओ तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ६ पुप्फ जाव गहाय पाडलिसंडं णयरं मज्झमझेणं पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरिणीं ओगाहेंति, ओगाहेत्ता ण्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं बहूहि मित्तणाइ जाव सद्धिं आसाएंति दोहलं विणेंति, एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं जाव जलंते जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव दोहलं विणेति तं इच्छामि णं जाव विणित्तए॥१२६॥ __भावार्थ - तदनन्तर वह धन्वंतरि वैद्य का जीव नरक से निकल कर इसी पाटलिषण्ड नगर में गंगादत्ता भार्या की कुक्षि-उदर में पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। लगभग तीन मास पूरे होने पर गंगादत्ता भार्या को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ - 'वे माताएं धन्य हैं यावत् उन्होंने ही जीवन के फल को प्राप्त किया है जो विपुल अशन पानादिक तैयार कराती है, करा. कर"अनेक मित्र ज्ञातिजन आदि की यावत् महिलाओं से घिरी हुई उस विपुल अशनादिक चतुर्विध आहार और सुरादि पदार्थों तथा पुष्पों यावत् अलंकारों को लेकर पाटलिपंड नगर के मध्य भाग में से निकलती
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