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सातवां अध्ययन - धन्वंतरि वैद्य की हिंसक मनोवृत्ति
१४३ ........................................................... तो वहाँ भी उन्होंने कंडू आदि रोगों से युक्त उसी पुरुष को देखा और वे भिक्षा लेकर वापिस आए। शेष सारा वर्णन पूर्व की भांति समझ लेना चाहिये यावत् तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं। .
- तदनन्तर भगवान् गौतम स्वामी तीसरी बार बेले के पारणे के निमित्त उक्त नगर में पश्चिम दिशा के द्वार से प्रवेश करते हैं तो वहाँ पर भी उसी पुरुष को देखते हैं। इसी प्रकार चौथी बार बेले के पारणे के निमित्त पाटलिषंड के उत्तरदिशा के द्वार से प्रवेश करते हैं तो वहाँ पर भी उसी • पुरुष को देखते हैं देख कर उनके मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि अहो! यह पुरुष पूर्वकृत अशुभ कर्मों के कटु विपाक को भोगता हुआ कैसा दुःखपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है? यावत् वापिस आकर उन्होंने भगवान् महावीर स्वामी से इस प्रकार निवेदन किया -
हे भगवन्! मैंने बेले के पारणे के निमित्त यावत् पाटलिपंड नगर की ओर प्रस्थान किया और नगर के पूर्वदिशा के द्वार से प्रवेश करते हुए मैंने एक पुरुष को देखा जो कि कण्डू रोग से पीड़ित यावत् भिक्षा से आजीविका कर रहा था। फिर दूसरी बार बेले के पारणे के निमित्त भिक्षा के लिए उक्त नगर के दक्षिण दिशा के द्वार से प्रवेश किया तो वहाँ पर भी उसी पुरुष को देखा एवं तीसरी बार जब पारणे के निमित्त उस नगर के पश्चिम दिशा के द्वार से प्रवेश किया तो वहाँ पर भी उसी पुरुष को देखा और चौथी बार जब मैं बेले का पारणा लेने पाटलिषण्ड में उत्तरदिशा के द्वार से प्रविष्ट हुआ तो वहाँ पर भी कंडू रोग से युक्त यावत् भिक्षावृत्ति करते हुए उसी पुरुष को देखा, उसे देख कर मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि अहो! यह पुरुष पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मों का फल भोग रहा है आदि।
हे भगवन्! यह पुरुष पूर्वभव में कौन था? जो इस प्रकार के भीषण रोगों से आक्रान्त हुआ जीवन बिता रहा है। गौतम स्वामी के इस प्रश्न को सुनकर भगवान् महावीर स्वामी उत्तर देते हुए कहने लगे.- .
धन्वंतरि वैद्य की हिंसक मनोवृत्ति एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे .. विजयपुरे णामं णयरे होत्था रिद्ध०। तत्थ णं विजयपुरे णयरे कणगरहे णामं राया होत्था। तस्स णं कणगरहस्स रण्णो धण्णंतरी णामं वेज्जे होत्था
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