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सातवां अध्ययन - दृश्य पुरुष की दयनीय दशा
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की अंगुलिएं सड़ी हुई थीं, नाक और कान भी गले हुए थे, रसिका और पीब (पीप) से थिवथिव शब्द कर रहा था, कृमियों से उत्तुद्यमान अत्यंत पीड़ित तथा गिरते हुए पीब (पीप)
और रुधिर वाले व्रण मुखों से युक्त था, उसके कान और नाक क्लेद तंतुओं से गल चुके थे बार-बार पूय कवल, रुधिर कवल तथा कृमि कवल का वमन कर रहा था और जो कष्टोत्पादक, करुणाजनक एवं दीनतापूर्ण शब्द कर रहा था। उसके पीछे मक्षिकाओं के झुण्ड के झुण्ड चले जा रहे थे, सिर के बाल अत्यंत बिखरे हुए थे, टाकियों वाले वस्त्र उसने ओढ रखे थे। भिक्षा का पात्र तथा जल का पात्र हाथ में लिए हुए घर-घर में भिक्षा वृत्ति के द्वारा अपनी आजीविका चला रहा था। ___तब भगवान् गौतम स्वामी ऊंच, नीच और मध्यम घरों में भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए यथेष्ट । भिक्षा लेकर पाटलिपंड नगर से निकल कर जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे वहां पर आये, आकर भक्तपान की आलोचना करते हैं तथा भक्त पान को दिखलाते हैं दिखला कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से आज्ञा प्राप्त कर बिल में प्रवेश करते हुए सर्प की तरह आहार करते हैं और संयम तथा तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बेले के पारणे के निमित्त पाटलिषंड नगर के पूर्व द्वार से प्रविष्ट हुए गौतम स्वामी ने विभिन्न रोगों से ग्रस्त नितांत दीन हीन दशा से युक्त जिस पुरुष को देखा, उसका वर्णन किया गया है। भगवान् गौतम स्वामी द्वारा देखे हुए उस पुरुष की दयनीय दशा से पूर्व संचित अशुभ कर्मों का फल कितना भयंकर और तीव्र होता है, यह अच्छी तरह स्पष्ट हो जाता है। _ 'बिलमिव पण्णगभूए अप्पाणेणं आहारमाहारेइ' पदों की व्याख्या टीकाकार इस . प्रकार करते हैं - :
"आत्मनाऽऽहारमाहारपति, किं भूतः सन्नित्याह-पन्नगभूतः नागकल्पो भगवान् आहारस्य रसोपलम्भार्थमचर्वणात् कथंभूतमाहारं? बिलमिव असंस्पर्शनात् नागो हि विलमसंस्पृशन्नात्मानं तत्र प्रवेशयति, एवं भगवानपि आहारमसंस्पृशन् रसोपलम्भादनपेक्षः सन् आहारयतीति।" ... अर्थात् - जिस तरह सांप बिल में सीधा प्रवेश करता है और अपनी गरदन को इधर . उधर का स्पर्श नहीं होने देता तात्पर्य यह है कि रगड़ नहीं लगाता किन्तु सीधा ही रखता है
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