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सातवां अध्ययन - धन्वंतरि वैद्य की हिंसक मनोवृत्ति
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वाला आयुर्वेद का एक अंग, सिवहत्थे - शिवहस्त-जिसका हाथ शिव-कल्याण उत्पन्न करने वाला हो, सुहहत्थे - शुभहस्त-जिसका हाथ शुभ हो अथवा सुख उपजाने वाला हो, लहुहत्थेलघुहस्त-जिसका हाथ कुशलता से युक्त हो, गिलाणाण - ग्लानों-ग्लानि प्राप्ति करने वालों, रोगियाण- रोगियों, वाहियाण - व्याधि विशेष से आक्रान्त रहने वालों, सणाहाण - सनाथों, अणाहाण - अनाथों, करोडियाण - करोटिक-कापालिकों-भिक्षु विशेषों, कप्पडियाण - . कार्पटिकों-भिखमंगों अथवा कन्धाधारी भिक्षुओं, आउराण - आतुरों की, मच्छमंसाई - मत्स्यों के मांसों का, उवदिसइ - उपदेश देता है, तितिर मंसाई - तितरों के मांसों का, सोल्लेहि - पकाये हुए, तलिएहि - तले हुए, भज्जिएहि - भूने हुए।
__ भावार्थ - इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम! उस काल और उस समय में इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के भारत वर्ष में विजयपुर नामक एक ऋद्धि समृद्धि से युक्त नगर था। • उसमें कनकरथ राजा राज्य करता था। उस कनकरथ नरेश के एक धन्वन्तरि नामक वैद्य था जो
अष्टांग आयुर्वेद का ज्ञाता-जानकार था। जैसे कि - १. कौमारभृत्य २. शालाक्य ३. शाल्यहत्य ४. कायचिकित्सा ५. जांगुल ६. भूतविद्या ७. रसायन और ८. वाजीकरण।
तदनन्तर वह धन्वंतरि वैद्य जो कि शिवहस्त, शुभहस्त और लघुहस्त था, विजयपुर नगर में कनकरथ राजा के अंतःपुर में रहने वाली रानी, दास तथा दासी आदि और अन्य बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाहों और अन्य बहुत से दुर्बल, ग्लान, रोगी, व्याधितजनों सनाथों, अनाथों तथा श्रमणों, ब्राह्मणों, भिक्षुकों, करोटकों, कार्पटिकों एवं आतुरों की चिकित्सा किया करता था उनमें से कितनों को मत्स्य मांसों के भक्षण का उपदेश देता, कितनों को कच्छुओं के मांसों का, कितनों को ग्राहों के मांसों का, कितनों को मगरों के मांसों का, कितनों को सुसुमारों के मांसों का और कितनों को अज-बकरों के मांसों का उपदेश करता। इसी प्रकार भेड़ों, गवयों-नील गायों, शूकरों, मृगों, शशकों, गौओं और महिषों के मांसों का उपदेश करता। कितनों को तितरों के मांसों का, बटेरों, लावकों (पक्षी विशेषों) कबूतरों, कुक्कड़ों (मुर्गों) और मयूरों के मांसों का उपदेश देता तथा अन्य बहुत से जलचर, स्थलचर और खेचर आदि जीवों के मांस का उपदेश करता और स्वयं भी वह धन्वंतरि वैद्य उन अनेकविध मत्स्य मांसों यावत् मयूर मांसों तथा अन्य बहुत से जलचर, स्थलचर और खेचर जीवों के मांसों से तथा मत्स्य रसों यावत् मयूररसों से पकाये हुए, तले हुए और भूने हुए मांसों के साथ छह प्रकार की सुरा आदि मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन आदि करता हुआ समय व्यतीत करता था।
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