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छठा अध्ययन - भविष्य-पृच्छा
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हे गौतम! वह नंदिषेणकुमार साठ वर्ष की परम आयु को भोग कर मृत्यु के समय में काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी-नरक में उत्पन्न होगा तथा शेष संसार भ्रमण पूर्ववत् समझ लेना चाहिये यावत् पृथ्वीकाय में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहाँ से निकल कर हस्तिनापुर में मत्स्य रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ पर मात्स्यिकों - मत्स्यों का वध करने वालों से वध को प्राप्त हो कर वहीं पर श्रेष्ठीकुल में उत्पन्न होगा। वहाँ पर बोधिलाभ अर्थात् सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा तथा सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा जहाँ संयम पालन कर सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा, परिनिर्वाण पद को प्राप्त करेगा, सर्व प्रकार के दुःखों का अंत करेगा। निक्षेप-उपसंहार पूर्ववत् जान, लेना चाहिये। इस प्रकार छठा अध्ययन संपूर्ण हुआ।
- विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गौतम स्वामी की जिज्ञासा का समाधान करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नंदिषेण के आगामी भवों का वर्णन करते हुए यावत् मोक्ष प्राप्ति का कथन किया है। छठे अध्ययन का निक्षेप (उपसंहार) इस प्रकार है -
श्री सुधर्मा स्वामी, श्री जम्बूस्वामी से फरमाते हैं कि - 'हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के छठे अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है। मैंने जो कुछ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सुना है उसी के अनुसार तुम्हें कहा है। इसमें मेरी अपनी कोई कल्पना नहीं है।' - इस छठे अध्ययन से निम्न शिक्षाएं ग्रहण की जा सकती है - .. १. दुर्योधन जेलर की भांति प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। . २. नंदिषेण की तरह किसी भी प्रकार के प्रलोभन में आकर अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं बनना चाहिये।
- इस प्रकार आत्मा का पतन करने वाले अधमाधम कृत्यों से बचकर आत्मोत्थान के कार्यों में प्रवृत्त होने का ही मानव का लक्ष्य होना चाहिये तभी वह मोक्ष सुखों को प्राप्त कर सकता है।
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ग्रहण की जा सकती है . . .
॥ षष्ठ अध्ययन समाप्त।
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