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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ..........................................................
विवेचन - नंदिषेण ने स्वयं राज्य सिंहासन पर आरूढ होने के लिये अपने पिता श्रीदाम को मरवाने के लिए किस प्रकार षड्यंत्र रचा और उसमें विफल होने से उस को किस प्रकार दण्ड भुगतना पड़ा, उसका वर्णन सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में किया है। ___"जिसका पुण्य प्रबल है उसे हानि पहुंचाने वाला संसार में कोई नहीं है" - उपरोक्त वर्णन से इस कथन की पुष्टि हो जाती है। पुण्य के प्रभाव से चित्त नाई स्वयं भी बचा और उसने महाराजा श्रीदाम को भी बचाया। नंदिषेण को अपने दुष्कृत्यों का फल भोगना पड़ा। ___ इस प्रकार भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी द्वारा मथुरा के राजमार्ग में जिस वध्य व्यक्ति को राजपुरुषों के द्वारा भयंकर दुर्दशा को प्राप्त होते हुए देखा था उस व्यक्ति के पूर्वभव . . सहित वर्तमान भव का परिचय दिया जो कि अपने परम उपकारी पिता का अकारण घात करके राजसिंहासन पर आरूढ़ होने की नीच चेष्टा कर रहा था अर्थात् जिन अधमाधम प्रवृत्तियों से यह नंदिषेण इस दयनीय दशा का अनुभव कर रहा है उसका संपूर्ण वृत्तांत सुनाते हुए गौतम स्वामी की जिज्ञासा का समाधान किया। अब गौतम स्वामी उसके भविष्य के विषय में अपनी जिज्ञासा प्रभु के समक्ष रखते हैं -
भविष्य-पृच्छा णंदिसेणे कुमारे इओ चुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! णंदिसेणे कुमारे सर्हि वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए०, संसारो तहेव० तओ हथिणाउरे णयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ मच्छिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सेडिकुले....बोहिं.....सोहम्मे कप्पे......महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं करेहिइ॥ णिक्खेवो॥११८॥
॥छट्ठमं अज्झयणं समत्तं॥ • भावार्थ - हे भगवन्! नंदिषेणकुमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जायेगा? कहाँ पर उत्पन्न होगा?
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