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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
दिये जाते हों अर्थात् नौकर, कल्लाकल्लिं - प्रतिदिन, कुद्दालियाओ - कुद्दाल-भूमि खोदने वाले शस्त्र विशेषों को, पत्थियपिडए - पत्थिका पिटक-बांस के निर्मित पात्र विशेषों-पिटारियों को, परिपेरंतेसु - चारों ओर, काइअंडए - काकी-कौए की मादा-के अण्डों को, घूइअण्डएघूकी-उल्लूकी (उल्लू की मादा) के अण्डों को, पारेवइ अण्डए - कबूतरी के अण्डों को, टिटिभि अण्डए - टिटिभी-टिटिहरी के अण्डों को, खगिअण्डए - बकी-बगुली के अण्डों को, जलयर-थलयर-खहयर-माईणं - जलचर, स्थलचर, खेचर जंतुओं के, अण्डाई - अण्डों को, उवणेति - दे देते हैं। ___भावार्थ - इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम! उस काल तथा उस समय इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में पुरिमताल नामक एक विशाल भवन आदि से युक्त, स्वचक्र परचक्रभय से मुक्त समृद्धशाली नगर था। उस पुरिमताल नगर में उदित नामक राजा था जो कि महाहिमवान्-हिमालय आदि पर्वतों के सदृश महान् था। उस पुरिमताल नगर में निर्णय नामक अण्डवाणिज-अण्डों का व्यापारी था जो धनी यावत् प्रतिष्ठित था एवं अधार्मिक यावत् दुष्प्रत्यानंद (किसी तरह संतुष्ट नहीं किया जा सके, ऐसा) था। ___ उस निर्णय नामक अण्डवाणिज के अनेकों नौकर-वेतनभोगी पुरुष (रुपया, पैसा और भोजन के रूप से वेतन ग्रहण करने वाले) थे जो कुद्दाल तथा बांस की पिटारियों को लेकर पुरिमताल नगर के चारों ओर अनेक काकी-कौए की मादा-के अण्डों को, घूकी (उल्लू की मादा) के अण्डों को, कबूतरी के अण्डों को, टिटिहरी के अण्डों को, बगुली के अण्डों को, मोरनी के अंडों को और मुर्गी के अण्डों को तथा अनेक जलचर, स्थलचर और खेचर आदि जंतुओं के अण्डों को लेकर बांस की पिटारियों में भरते थे, भर कर निर्णय नामक अण्डवाणिज के पास आते थे, आकर उस अण्डवाणिज को अण्डों से भरी हुई वे पिटारियां दे देते थे।
निर्णय का हिंसक व्यापार .. तए णं तस्स णिण्णयस्स अंडवाणियस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा बहवे काइअंडए य जाव कुक्कुडिअंडए य अण्णेसिं च बहूणं जलयर-थलयरखहयरमाईणं अंडयए तंवएसु य कवल्लीसु य कंदुएसु य भजणएसु य इंगालेसु य तलति भज्जेंति सोल्लेति तलेता भज्जंता सोल्लेंता रायमग्गे अंतरावणंसि अंडयपणिएणं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति ॥६६॥
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