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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध .......... डंभणाणि य हत्थंगुलियासु य पायंगुलियासु य कोहिल्लएहिं आउडावेइ
आउडावेत्ता भूमिं कंडूयावेइ। अप्पेगइए सत्थेहि य जाव णहच्छेयणेहि य अंगं पच्छावेइ दब्भेहि य कुसेहि य ओल्लबद्धेहि य वेढावेत्ता वेढावेइ आयवंसि दलयइ दलइत्ता सुक्के समाणे चडचडस्स उप्पाडेइ। __तए णं से दुज्जोहणे चारगपालए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता एगतीसं वाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमठिइएसु णेरइत्ताए . उववण्णे॥११॥
कठिन शब्दार्थ - णिलाडेसु - मस्तकों में, अवदूसु - अवटुयों-कंठमणियों-घंडियों में, कोप्परेसु- कूपरों-कोहनियों में, जाणूसु - जानुयों में, खलुएसु-गुल्फों-गिट्टों में, कडसक्काराओबांस की शलाकाओं को, दवावेइ - दिलवाता है-ठुकवाता है, अलए - बिच्छु के कांटों को, भजावेइ- शरीर में प्रविष्ट कराता है, आउडावेइ - प्रविष्ट कराता है, कंडूयावेइ-खुदवाता है, उल्लचम्मेहि- आर्द्र चर्मों से, वेढावेइ - बंधवाता है, आयवंसि - आतप-धूप में, चडचडस्सचड़चड़ शब्द पूर्वक। ___ भावार्थ - कितनों के मस्तकों, अवटुयों (कंठमणियों, घंडियों) जानुयों और गुल्फों में लोहकीलों तथा वंशशलाकाओं को ठुकवाता है तथा वृश्चिककण्टकों-बिच्छू के कांटों को शरीर में प्रविष्ट कराता है। कितनों की हाथों की अंगुलियों में, पैरों की अंगुलियों में मुद्गरों के द्वारा सूइयें और दंभनों को प्रविष्ट कराता है तथा भूमि को खुदवाता है। कितनों का शस्त्रों यावत् नख- च्छेदनकों से अंग को छिलवाता है और दौं (मूल सहित कुशाओं) कुशाओं-मूल रहित कुशाओं से, आर्द्र चर्मों से बंधवाता है, बंधवा कर धूप में डलवाता है, धूप में डलवा कर सूखने पर चड़चड़ शब्दपूर्वक उनका उत्पाटन कराता है।
तदनन्तर वह दुर्योधन चारकपाल इन्हीं निर्दयतापूर्ण प्रवृत्तियों को अपना कर्म बनाये हुए, इन्हीं में प्रधानता लिये हुए, इन्हीं को अपनी विद्या-विज्ञान बनाये हुए तथा इन्हीं दूषित प्रवृत्तियों को अपना सर्वोत्तम आचरण बनाये हुए अत्यधिक पाप कर्मों का उपार्जन करके ३१ सौ वर्ष की परमायु को भोग कर कालमास में काल करके छठी नरक में उत्कृष्ट २२ सागरोपम की स्थिति वाली नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुआ।
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