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नरक में उत्पत्ति
है, हेट्ठामुहे - अधोमुख, छडछडस्स छड़ छड़ शब्द पूर्वक, वम्मावेइ - वमन कराता है, ओवीलं - पीड़ा, हत्थंदुयाई - हस्तान्दुकों से, संकोडियमोडियए - संकोचन और मरोटन करता है, संकलबंधणे - सांकलों से बांधता है, सत्थोवाडिए - शस्त्रों से उत्पाटित-विदारित, अगडंसि - अवट - कूप में, अब्भंगावेइ - मर्दन कराता है।
भावार्थ तदनन्तर वह दुर्योधन नामक चारकपाल (जेलर ) सिंहरथ राजा के अनेक चोर, पारदारिक, ग्रन्थिभेदक, राजापकारी, ऋणधारक, बालघाती, विश्वासघाती, जुआरी और धूर्त पुरुषों को राजपुरुषों के द्वारा पकड़वा कर ऊर्ध्वमुख (सीधा ) गिराता है, गिरा कर लोहदंड से मुख खोलता है, मुख खोल कर कितनेक को तप्त तांबा पिलाता है, कितनेक को त्रपु, सीसक, चूर्णादि मिश्रित जल अथवा कलकल करता हुआ उष्ण जल और क्षारयुक्त तैल पिलाता है तथा कितनों का उन्हीं से अभिषेक कराता है।
कितनों को ऊर्ध्वमुख गिरा कर उन्हें अश्वमूत्र, हस्तिमूत्र यावत् भेडों का मूत्र पिलाता है । कितनों को अधोमुख गिरा कर छलछल शब्द पूर्वक वमन कराता है तथा कितनों को उसी के द्वारा पीड़ा देता है। कितनों को हस्तान्दुकों, पादान्दुकों, हडियों तथा निगडों के बंधनों से युक्त • कराता है। कितनों के शरीर को सिकोड़ता और मरोड़ता है। कितनों को सांकलों से बांधता है तथा कितनों का हस्तच्छेदन यावत् शस्त्रों से उत्पाटन कराता है अर्थात् शस्त्रों से शरीरावयवों को काटता है। कितनों को वेणुलताओं-बैत की छड़ियों यावत् वल्करश्मियों-वृक्षत्वचा के चाबुकों से पिटवाता है।
छठा अध्ययन
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कितनों को ऊर्ध्वमुख करवा कर छाती पर शिला धरवाता है और धरवा कर लक्कड रखवाता हैं, रखवा कर राजपुरुषों द्वारा उत्कंपन करवाता है। कितनों को चर्म की रस्सियों के द्वारा यावत् सूत्र रज्जुओं से हाथों और पैरों को बंधवाता है, बंधवा कर कूप में उल्टा लटकाता है, लटका कर गोते खिलाता है तथा कितनों का असिपत्रों तलवारों से यावत् कलंबचीरपत्रों से छेदन कराता है और उस पर क्षारयुक्त तैल की मालिश कराता है।
नरक में उत्पत्ति
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अप्पेगइए णिलाडेसु य अवदूसु य कोप्परेसु य जाणूसु य खलुएसु य लोहकीलए य कडसक्काराओ य दवावेइ अलिए भंजावेइ । अप्पेगइए सूईओ य
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