________________
पांचवां अध्ययन - पूर्व भव-पृच्छा
११५
युवराज था। उस उदयनकुमार की पद्मावती नाम की देवी थी। उस शतानीक का सोमदत्त नामक पुरोहित था जो कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्व वेद का ज्ञाता था। उस सोमदत्त का पुत्र और वसुदत्ता का आत्मज बृहस्पतिदत्त नामक बालक था जो अन्यून एवं निर्दोष पंचेन्द्रिय शरीर वाला था।
विवेचन - चतुर्थ अध्ययन की समाप्ति पर पांचवें अध्ययन का प्रारंभ किया जाता है जिसका उत्क्षेप-प्रस्तावना इस प्रकार है -
जंबू स्वामी अपने गुरु आर्य सुधर्मा स्वामी से विनय पूर्वक निवेदन करते हैं कि :- हे भगवन्! ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विपाक सूत्र के चौथे अध्ययन में जो भाव फरमाये हैं वे मैंने आपके मुखारविन्द से सुने हैं। अब मुझे पांचवें अध्ययन के भाव सुनने की जिज्ञासा हो रही है अतः श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विपाक सूत्र के पांचवें अध्ययन के क्या भाव फरमाये हैं सो कृपा कर कहिये।
जम्बू स्वामी के सानुरोध निवेदन पर श्री सुधर्मा स्वामी ने वीरभाषित विपाक सूत्र के पांचवें अध्ययन का अर्थ सुनाना प्रारंभ किया जिसका वर्णन भावार्थ से स्पष्ट है। ___ अब सूत्रकार कौशाम्बी नगरी के बाहर चन्द्रावतरण उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पदार्पण का वर्णन करते हैं -
_ पूर्व भव-पृच्छा - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे........समोसरणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव जाव रायमग्गमोगाढे तहेव पासइ हत्थी आसे पुरिसमझे पुरिसं चिंता तहेव पुच्छइ पुव्वभवं भगवं वागरेइ – एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहेवासे सव्वओभद्दे णामं णयरे होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धे। तत्थ णं सव्वओभद्दे णयरे जियसत्तू णामं राया होत्था। तस्स णं जियसत्तुस्स रण्णो महेसरदत्ते णामं पुरोहिए होत्था रिउव्वेय जाव अथव्वणवेयकुसले यावि होत्था॥१०॥ - कठिन शब्दार्थ - तहेव - तथैव-उसी भांति, पुव्वभवं - पूर्वभव का, वागरेइ - वर्णन करते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org